मौसम उपग्रह हमारी पृथ्वी के वायुमंडल, सागरों, महासागरों, पर्वत, जंगल, रेगिस्तान, भूमि और बादलों में हो रही या होने वाली घटनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। इन सूचनाओं के जरिए वैज्ञानिकों को मौसम और जलवायु का पूर्वानुमान लगाने में मदद मिलती है। तभी वह आपको भविष्य में होने वाली घटनाओं की सटीक घोषणा कर पाते हैं।
1. मौसम उपग्रहों का अवलोकन
मौसम उपग्रह वायुमंडल का भौगोलिक दृश्य दिखाते हैं। इन उपग्रहों का उपयोग मौसम विज्ञानियों द्वारा मौसम के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है।
- मौसम उपग्रहों के प्रकार :
दो प्रकार के मौसम उपग्रह होते हैं पहला ध्रुवीय परिक्रमा करने वाले मौसम उपग्रह और दूसरा भूस्थिर परिक्रमा करने वाले मौसम उपग्रह।
ध्रुवीय परिक्रमा करने वाले मौसम उपग्रह उत्तर-दक्षिण दिशा में पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। ये उपग्रह दिन में दो बार एक ही स्थान को देखते हैं। इनका मुख्य काम पृथ्वी पर तापमान और नमी के डेटा इकट्ठा करना और वायुमंडल की आवाज को उपलब्ध कराना रहता है।
भू-स्थिर उपग्रह भूमध्य रेखा से 22,000 मील ऊपर परिक्रमा करते रहते हैं। ये उपग्रह पृथ्वी की गति के समान ही गति से घूमते हैं। इसलिए वे उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष लगातार एक ही एरिया में फोकस्ड रहते हैं। यह उपग्रह हर 30 मिनट में पृथ्वी की तस्वीर लेते हैं।
- उपग्रह डेटा कैसे एकत्र करते हैं :
मौसम उपग्रह हमारी पृथ्वी के छोटे-छोटे पिक्सल ब्लॉक बनाकर अपने कंट्रोल सेंटर पर चित्र भेजते हैं, जिस चित्र का यह पिक्सल ब्लॉक जितना छोटा होता है, उस चित्र में उतना ही अधिक डिटेल्स होता है।
- ऐतिहासिक विकास :
मौसम उपग्रह के इतिहास में सबसे पहला सफल मौसम उपग्रह नासा ने 1 अप्रैल सन् 1960 को टेलीविज़न इन्फ्रारेड ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट (TIROS-1) के नाम से लांच किया गया था उसके बाद भारत ने आर्यभट्ट प्रथम नाम से 19 अप्रैल 1975 को अपना पहला उपग्रह लांच किया। फिर 18 जुलाई 1980 को रोहिणी-1, नाम के उपग्रह को लांच किया गया। 1998 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक भारतीय उपग्रह (INSAT) लॉन्च किया। इसमें GSAT नामक उपग्रह शामिल है। इसके बाद इसरो ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV-C57) का सफल प्रक्षेपण 2 सितंबर 2023 को श्रीहरिकोटा से किया है जो 6 जनवरी 2024 को पृथ्वी की प्रभामंडल कक्षा में स्थापित हो गया।
2. सैटेलाइट डेटा के पीछे का विज्ञान
उपग्रह पर लगे सेंसर डेटा एकत्र करते हैं यह सेंसर की प्रकाश वेवलेंथ की स्पेशल कटेगरी को स्पेक्ट्रल बैंड कहते हैं। सक्रिय सेंसर पृथ्वी पर एक लेज़र लाइट डालकर इसके परावर्तित होकर वापस आने के समय को मापते हैं। और निष्क्रिय सेंसर पृथ्वी की सतह से प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को रिकॉर्ड करते हैं।
- एकत्र किए जाने वाले डेटा के प्रकार :
पोलर उपग्रह मौसम, जलवायु और पर्यावरण निगरानी के लिए डेटा एकत्र करते हैं, यह वर्षा, समुद्र की सतह का तापमान, वायुमंडल का तापमान और आर्द्रता, जंगल की आग, ज्वालामुखी विस्फोट आदि की जानकारी देते हैं।
- डेटा प्रोसेस और अंतरण:
मौसम विज्ञान केन्द्र पर स्थित कंप्यूटर, उपग्रहों, राडार और अन्य स्रोतों से डेटा एकत्र करते हैं। उसके बाद उनको पिछली घटनाओं के साथ जोड़कर देखते हैं। इस प्रासेस को डेटा एसिमिलेशन कहा जाता है। इस प्रक्रिया मौसम मॉडल के लिए शुरुआती स्थितियों को शुद्ध करने में मदद मिलती है, इससे पूर्वानुमानों की सटीकता बढ़ जाती है।
- एल्गोरिदम और माॅडल्स का प्रयोग:
मौसम के पूर्वानुमान लगाने में एल्गोरिदम आवश्यक उपकरण है। इन उपकरणों की सहायता से मौसम विज्ञानी डेटा के प्रोसेस, एनालिसिस और पूर्वानुमान लगाने और उन अनुमान को बताने (communicate) में सफल होते हैं। यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण काम होता है। इससे पूर्वानुमान की सटीकता तय होती है।
3. मौसम पूर्वानुमान की सटीकता पर प्रभाव
मौसम पूर्वानुमान की सटीकता डेटा, मॉडल और उसके तरीकों के विभिन्न स्रोतों पर निर्भर करती है।
- रियल टाइम माॅनीटरिंग :
वास्तविक समय की निगरानी सिस्टम, लगातार डेटा प्राप्त करते हुए उनके प्रोसेस और उनको अपडेट करते रहने से सटीक जानकारी देता है। इस निगरानी सिस्टम से शून्य विलंबता(zero delay time) पर सूचना मिलती है। इसलिए मौसम संबंधी डेटा एकत्र करने और उनके विश्लेषण में मिनिमम विलंब होता है। रियल टाइम माॅनीटरिंग सिस्टम, किसी संभावित समस्या और महत्वपूर्ण घटना का तत्काल पता लगाने में सक्षम होता है।
- पूर्वानुमान माॅडल्स का सुधार :
आप जानते हैं कि सौर सतह के विकिरण का अनुमान हाई रिज़ॉल्यूशन वाले उपग्रह से लगाया जाता है। इसलिए हमारे मौसम विज्ञानी पूर्वानुमान के लिए सैटेलाइट पिक्चर्स का प्रयोग डेटा सोर्स के लिए करते हैं। यह अस्थायी और सटीक जानकारी के लिए जरूरी है। मौसम उपग्रह डेटा बादलों के बारे में जानकारी देता है। क्योंकि बादल ही पृथ्वी की सतह के विकिरण के लिए सबसे अच्छा वायुमंडलीय पैरामीटर होता है।
- लंबी अवधि के पूर्वानुमान :
लंबी अवधि के पूर्वानुमान ज्यादातर ऐतिहासिक घटनाओं के रिकॉर्ड और धरती के अंदर होने वाली गतिविधियों के डेटा के आधार पर महीनों से लेकर सालों तक होने वाली विस्फोटक गतिविधियों के पूर्वानुमान को बताते हैं। ये पूर्वानुमान संभावनाओं पर आधारित होते हैं और इनका उपयोग भूमि के उपयोग के लिए योजना बनाने में, और सुविधा स्थलों के निर्धारण के लिए होता है।
4. गंभीर मौसम की भविष्यवाणी में भूमिका
मौसम उपग्रह का प्रयोग वायुमंडल की स्थिति और महासागरों में होने वाली स्थितियों को मापकर मौसम की गंभीर घटनाओं का अनुमान लगाते हैं।
- तूफान और चक्रवात को ट्रैक करने में :
मौसम उपग्रह वायुमंडल के टेम्परेचर, प्रेशर और नमी को मापकर तूफानों का पूर्वानुमान बहुत पहले बता देते हैं। मौसम उपग्रह समुद्र की सतह की ऊंचाई मापकर तूफानी लहरों और समुद्र के बढ़ते स्तर का पूर्वानुमान लगाते हैं। जेपीएसएस वाले पोलर उपग्रह वायुमंडल और समुद्र की सतह के तापमान को मापकर यह अनुमान लगाते हैं कि तूफान कहां आएगा।
- वायुमंडलीय स्थितियों का पता लगाना :
मौसम उपग्रह पृथ्वी की फोटो लेकर, बादलों के पैटर्न और तापमान की निगरानी करके, मौसम को खराब करने वाली स्थितियों की पहचान करते हैं। मौसम विज्ञानी समय-समय पर इन चित्रों का अध्ययन करके आंधी-तूफान का पता लगाते हैं। बादलों में गुरुत्व तरंगों की उपस्थिति से यह संकेत मिलता है कि तूफान कितना भयंकर हो सकता है। बादलों का तापमान से भी तूफान आने का पता चलता है। ठंडे शीर्ष वाले बादल वायुमंडल में ऊंचे होते हैं और वे गरज चमक वाले आँधी- तूफान लाने के लिए पर्याप्त ऊंचे होते हैं।
- आपातकालीन रिस्पांस और तैयारी :
इसरो ने आपदा प्रबंधन के लिए 16 अगस्त 2024 को EOS-8 सैटेलाइट लांच किया है जो किसी भी आपदा के आने सेए पहले ही जानकारी देगा जिससे कि आप उस आपदा से निपटने के लिए अपनी तैयारी कर लें। यह आपको आपदाओं के आने से कई दिन पहले जानकारी दे देगा। जिससे प्रिडिक्टिव बचाव समय रहते किया जा सके। और पब्लिक संपत्ति और जन धन की हानि कम से कम हो।
5. मौसम उपग्रहों का भविष्य
- प्रौद्योगिकी में प्रगति :
अब तकनीक की प्रगति तेज हो गयी है। कभी भारत टेक्नोलॉजी में पिछड़ा था वह अब इतिहास की बात रह गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो ने बहुत प्रगति कर ली है। अब हम अपने सैटेलाइट लांचरो को किराये पर देने की स्थिति में आ गये हैं और एक साथ कई सैटेलाइट लांच करने लगे हैं। हमारी बढ़ती तकनीक अब नैनोसेट्स को लांच करने की दिशा में बहुत आगे निकल गयी है। 500 किलोग्राम से छोटे लघु उपग्रह कम पैसे, समय और जगह में जटिल से जटिल काम करने में सफल हो रहे हैं। इस टेक्नोलॉजी ने अंतरिक्ष और सैटेलाइट लांचिंग में निजी क्षेत्र के लिए कई संभावनाओं को खोल दिया है। ये नैनो सैटेलाइट छोटी जगहों के चित्र बड़ी आसानी से भेज रहे हैं। इस क्षेत्र में आयनमंडलीय कनेक्शन एक्सप्लोरर (ICON) नाम के 272 किलोग्राम के छोटे उपग्रह ने कमाल का उदाहरण पेश किया है। यह आयन मंडल का अध्ययन करने में सफल हुआ है। अगर यह न होता तो उसी काम के लिए दो या दो से अधिक सैटेलाइट की आवश्यकता पड़ती।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग :
हमारे टेक्नोलॉजी के विकास में वैश्विक भागीदारी से हम आपस में टेक्नोलॉजी को शेयर करके विकास की गति को आगे बढ़ाने में सफल हुए हैं।
नासाइस समय हमारे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) उपग्रह मिशन पर काम कर रहा है। इस NISAR उपग्रह का उपयोग पृथ्वी की सतह और बर्फ की सतहों में होने वाले बदलावों की निगरानी रखने के लिए एक रडार के जरिए डेटा भेजेगा जो मौसम वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन, भूमि के उपयोग और प्राकृतिक खतरों से सतर्क करेगा।
- दूसरी टेक्नोलॉजी के साथ समाकलन :
मौसम उपग्रह अधिकतर मौसम के पैटर्न को ही पकड़ पाते हैं, जबकि जमीन पर स्थित स्टेशन लोकल डेटा देते हैं। रडार सिस्टम तूफान और वर्षा के पैटर्न और वर्षा के बँटवारे की भविष्यवाणी करने में सहायक होती है। सेंसर युक्त बैलून्स या ड्रोन ऊपरी वायुमंडल की स्थितियों के डेटा इकट्ठा कर लेते हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम मशीन लर्निंग आधारित मौसम पूर्वानुमान (MLWP) को विकसित कर सके हैं। हमारे वैज्ञानिकों ने पांच एमएलडब्ल्यूपी मॉडल बनाने मे सफल हुए हैं। ये माडल, पंगु-वेदर, फोरकास्टनेट v2, ग्राफकास्ट, फूक्सी और फेंगवू हैं। जो सटीक पूर्वानुमान और सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं।