भारत के तमाम भागों में अक्सर हम देखते रहते हैं कि कोई न कोई आपदा आ ही जाती है। और यह आपदाएं हर मौसम में आती हैं। ये मौसमी आपदाएं हमारे लिए एक गंभीर मौसमी घटनाएं होती है। यह हमारी बड़ी समस्या है जिसका देश के सभी हिस्सों को सामना करना पड़ता है। ये मौसमी आपदाएं देश केलिए और समाज के लिए महत्वपूर्ण क्षति का कारण बनती है। इससे हमारे विकास की गाड़ी रुक जाती है। मौसम संबंधी आपदाओं के कुछ उदाहरणों में हम समुद्री चक्रवात, बवंडर, तूफान, बर्फानी तूफान, बाढ़, जंगल की आग या कोई भी मौसम की अचानक होने वाली घटना शामिल कर सकते हैं। यह मौसम संबंधी आपदाएं लोगों के जीवन को बड़ा नुकसान और व्यवधान पहुंचाती हैं।
इसलिए किसी भी तरह की विपरीत मौसम की घटना से निपटने के लिए हमें तैयार रहना बहुत जरूरी है।
मौसम संबंधी आपदाएँ क्या है?
मौसम विज्ञान के अनुसार मौसम संबंधी आपदा एक तरह की जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटना को कहा जा सकता है। इन मौसम संबंधी आपदाओं में समुद्री तूफान, ज्वार भाटा, गर्म लहरें, बाढ़, बादलों का फटना, बर्फीले तूफान, सुनामी, सूखा, तेज तापमान के कारण जंगलों में आग लगने जैसी घटना, तेज बारिश में पहाड़ों का टूटना जैसी तमाम मौसम संबंधी घटनाएं शामिल होती हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम संबंधी आपदाओं और उससे होने वाले प्राकृतिक खतरों का एक उदाहरण उष्णकटिबंधीय चक्रवात है। यह चक्रवात विनाशकारी हवाओं के साथ-साथ मूसलाधार बारिश, तूफानी लहरें और बाढ़ लाता है। यह चक्रवात तापमान, वर्षा, समुद्र के स्तर और तूफान की विशेषताओं जैसे तूफान आने की फ्रिक्वेंसी, और तीव्रता आदि मानव बस्तियों और प्राकृतिक परिस्थितियों को प्रभावित करते हैं।
मौसम संबंधी आपदाओं में बाढ़ और समुद्र में उठने वाली तूफ़ानी लहरें हवा की तुलना में कई गुना ज़्यादा विनाशकारी होती हैं। इसके कारण हवा से बिखरा हुआ मलबा और गिरती हुई इमारतें कई लोगों की जान ले लेने का कारण बनती हैं। उष्णकटिबंधीय तूफ़ान ज्यादातर बड़े भूभाग को अपनी चपेट में ले लेते हैं। इसके साथ-साथ वह कृषि और संपत्ति का भी नुकसान करते है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार पिछले 50 वर्षों में मौसम संबंधी आपदाओं के कारण 20 लाख लोगों की मौत हुई है।
मौसम संबंधी आपदाओं से बचने के लिए मौसम विज्ञान विभाग की भूमिका
मौसम विज्ञान विभाग के बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, पूर्वानुमान, भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन के कारण 1970 और 2019 के बीच मानव और पशुओं की मौतों की संख्या लगभग तीन गुना कम हुई है। हम आपदा का सामना नहीं कर सकते हैं लेकिन मौसम विज्ञान विभाग की पूर्व चेतावनी पाकर हम मौसम संबंधी आपदाओं से बचने के लिए पहले से ही अपना इंतजाम कर सकते हैं। मौसम विज्ञान विभाग की चेतावनी से ही शून्य जोखिम रणनीति बनाई गई। मौसम विज्ञान विभाग की सटीक चेतावनी के कारण ही सरकार की राहत एजेंसियों ने फणि (Fani) जैसे गंभीर चक्रवात से आप्रभावितपदा से प्रभावित होने वाले क्षेत्र को खाली करवा लिया तथा उनको समय पर बचाव कार्य शुरू करने में सहायता मिली थी।
मौसम संबंधी आपदाओं की ऐतिहासिक घटनाओं से सीखे हुए सबक
मौसम संबंधी आपदाएं मानव, वस्तुओं आदि के साथ-साथ आर्थिक और पर्यावरण को भी गंभीर हानि पहुँचाती हैं। जिसकी भरपाई मनुष्य अपने सीमित संसाधनों के द्वारा नहीं कर सकता है। कई बार ऐसा होता है कि एक आपदा के चलते दूसरी आपदा आ जाती है जो अधिक नुकसान कर जाती है। जैसे 26 दिसम्बर सन् 2004 को बंगाल की खाड़ी में 9.0 तीव्रता से आए भूकंप के कारण सुनामी की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। इस घटना में लगभग 160000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इस सुनामी को अब तक की सबसे विनाशकारी सुनामी कहा गया है।
इससे पहले भी 2001 में गुजरात में भूकंप की घटना हुई थी और 1999 में उड़ीसा में सुपर साइक्लोन ने विनाशलीला की थी। इन घटनाओं ने एक व्यापक आपदा प्रबंधन की आवश्यकता को महसूस किया। इस पर प्रतिक्रिया करते हुए, 26 दिसंबर, 2005 को आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया गया, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना हुई। जिसके बाद इस प्राधिकरण की सिफारिश को मानकर आपदा प्रबंधन अधिनियम का एक महत्वपूर्ण अंग राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) का गठन किया गया। जिसका उद्देश्य प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिए त्वरित प्रतिक्रिया करते हुए बचाव और राहत कार्य करना था। 2006 में 8 बटालियनों के साथ शुरू हुए एनडीआरएफ में अब 16 बटालियन हैं जिनमें से प्रत्येक बटालियन में 1149 कर्मी रहते हैं। इसके बाद केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी इसी पैटर्न पर राज्य स्तरीय एस डी आर एफ बनाये हैं।
निष्कर्ष
मौसम संबंधी आपदाओं से निपटने के लिए केवल एनडीआरएफ और एसडीआरएफ ही नहीं जरूरत पड़ने पर सेना, पुलिस, नेवी, कोस्टगार्ड, अर्धसैनिक बल और वायुसेना भी सहायता करती है। जैसे सितम्बर 2014 में कश्मीर में भयंकर सैलाब आया था तब सेना और वायुसेना ने कई लोगों को उनके घरों से निकालने का काम किया था।