मौसम के पैटर्न में महासागरों की भूमिका

मौसम के पैटर्न में महासागरों की भी भूमिका होती है। यह  हमारे वायुमंडल के एक महत्वपूर्ण अंग हैं। तटीय इलाकों में धरती की तुलना में यह धीमी गति से ठंडे और गर्म होते हैं इससे तटीय इलाकों में मौसम बनता है।

1. महासागरीय धाराएँ और जलवायु पर उनका प्रभाव

महासागर में उठने वाली धाराएं पृथ्वी की भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर बहती हैं और फिर ध्रुवों से वापस आती हैं। इस प्रकार ये धाराएं जलवायु परिवर्तन का कारण बनती हैं।

  • ग्लोबल कन्वेयर बेल्ट:

मुख्य महासागरीय धाराएं ऊष्मा को भूमध्य रेखा के समीप से उठा कर दोनों ध्रुवों की ओर लाती और ले जाती हैं इस तरह से यह कन्वेयर बेल्ट का काम करती हैं जैसे आपने एयरपोर्ट पर आगमन लाउंज में देखते हैं कि  कन्वेयर बेल्ट  आपके  किसी सामान या बैगेज को डिलीवरी बिन्दु से आप तक पहुँचा देता है और फिर वापस वहीं  चला जाता है और उसका यह चक्र चलता रहता है। उसी तरह से ये धाराएं चलती रहती हैं इनमें प्रमुख गल्फस्ट्रीम की धारा है। ये धाराएं ऊष्मा को गर्म क्षेत्रों से ठंडे और ठंडे क्षेत्रों से गर्म क्षेत्र में लाती ले जाती हैं। इस तरह से यह धाराएं तापमान को नियंत्रित करती हैं और मौसम के पैटर्न  बनाती हैं।

  •  ऊष्मा वितरण:

महासागर में उठने वाली धाराएं सौर ऊर्जा को अपने पीछे लेकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं।  और तटीय इलाकों में तापमान नियंत्रित करती हैं। जैसे कि आप देख लीजिए कि गल्फस्ट्रीम की धाराएं यूरोप के उत्तरी हिस्सों को बाकी हिस्सों से ज्यादा गर्म रखती हैं।  कोस्टल रीजन में यह समुद्री धाराएं ही मौसम का पैटर्न तय करती हैं। इससे पृथ्वी पर सौर ऊर्जा का असमान वितरण रुकता है।

 

  • अल नीनो और ला नीनो:

अल नीनो को हम प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में समुद्री तल के एक निश्चित काल लगभग 18 महीने  तक गर्म करने की घटना के रूप में जानते हैं और ला नीना इन क्षेत्रों में तीन साल तक तापमान को औसत से कम ठंडा रखता है। तह उत्तरी गोलार्ध में वसंत से गर्मियों तक डेवलप होते हैं और सर्दी में चरम पर पहुँच जाते हैं। यह दोनों ठंडे और गर्म क्षेत्रों में दोलन करते हैं जिससे ग्लोबल मौसम पैटर्न बदलता रहता है।

2. समुद्री सतह के तापमान का प्रभाव

 

  • तूफान बनने के असर:

समुद्र की सतह का तापमान जैसे-जैसे बढ़ता जाता है तो पानी या चक्रवात का बनने का प्रक्रिया शुरू होने लगता है इन तूफानों को ऊर्जा समुद्र के गर्म पानी से मिलती है। इससे हवा गर्म होती है और वहाँ पर दबाव कम हो जाता है। फिर इस कम एयर प्रेशर वाले क्षेत्र को भरने के लिए तेज गति से हवा ऊपर उठती है और वहाँ पर गर्म हवा ठंडी की ओर भागती है जिससे और ज्यादा ऊर्जा उत्पन्न होती है तब  चक्रवात बनता है।

 

  • फीडबैक तंत्र:

फीडबैक लूप ऐसा सिस्टम होता  है जो जलवायु परिवर्तन में सहायक होता है। यह तापमान में वृद्धि की गति को तेज या धीमा कर देता है।  जब फीडबैक सकारात्मक मिलता तब तापमान वृद्धि तेज हो जाती है और नकारात्मक फीडबैक से  इसकी गति धीमी हो जाती है। अगर वातावरण गर्म होने लगता है, तो वायुमंडल में जल वाष्प की मात्रा बढ़ जाती है। यह जलवाष्प एक ग्रीनहाउस  गैस होती है जिसका असर वायुमंडल पर पड़ता है।

  • ठंडे और गर्म क्षेत्र:

समुद्री तल का तापमान उसके ऊपर स्थित हवा  को प्रभावित करता है। यह दोनों एक आपस में  ऊष्मा का एक्सचेंज करते हैं। इससे  समुद्री जल के वाष्पीकरण की गति प्रभावित होती है। वाष्पीकरण से पानी का टेम्परेचर कम हो जाता है। समुद्री तल का तापमान और उसके ऊपर वायुमंडल के बीच ऊष्मा और नमी के एक्सचेंज से ठंडे और गर्म क्षेत्रों का निर्माण  होता है। जिसके कारण मौसम में बदलाव आता है और तूफान, वर्षा आदि की घटना होती है।

 

3. महासागर और वायुमंडलीय अंतःक्रियाएँ

 

  • वाष्पीकरण और आर्द्रता:

वायुमंडल में आर्द्रता अधिक होने पर वाष्पीकरण की गति धीमी  हो जाती है। क्योंकि  यदि किसी  स्थान की हवा में पहले से ही जल वाष्प है, तो वहाँ और वाष्प नहीं आ पाएगी। इसलिए, वाष्पीकरण गति धीमी होगी। इसी कारण से आप अनुभव करते होंगे कि गर्मी में आर्द्रता बढ़ जाती है क्योंकि पानी का वाष्पीकरण तेज होता है।  महासागर के जल के वाष्पीकरण से वायुमंडल में नमी बढ़ जाती है।

 

  • महासागर-वायुमंडल एक्सचेंज:

महासागर के तल से जल के वाष्पीकरण से वायुमंडल में नमी बढ़ जाती है। यही नमी  आगे चलकर बादल बनाती है और वर्षा के मौसम का निर्माण होता है। आप समझ सकते हैं कि वातावरण में नमी ही मौसम का पैटर्न तय करती है और तूफानों के निर्माण को भी प्रभावित करती है।

 

  • चक्रवात प्रक्रिया में भूमिका:

कम दबाव वाले वायुमंडल  क्षेत्र  में चक्रवात के  संचरण का विकास साइक्लोनेजेसिस कहलाता है।  तीन तरह के चक्रवातों में  उष्णकटिबंधीय चक्रवात समुद्री सतह से ऊष्मा लेकर एक गर्म केन्द्र बनाते हैं और तूफान का निर्माण करते हैं। जबकि मेसोसाइक्लोन जमीन के ऊपर वायुमण्डल में एक गर्म केन्द्र बनाते हैं और बवंडर का निर्माण  करते हैं।

4. चरम मौसम पर समुद्री स्थितियों का प्रभाव

 

  • सूखा और बाढ़:

बारिश की कमी और अधिकता के कारण सूखा और  बाढ़ जैसी स्थिति बनती है। इसमें महासागरीय स्थितियों का अहम रोल रहता है। महासागरों के तल के तापमान में वृद्धि होने से सूखे की संभावना बनती है। जैसा कि शोधकर्ताओं ने अपनी भविष्यवाणी में  बताया है कि प्रशांतमहासागर  में सतह का तापमान लगातार बढ़ रहा है जिससे पूर्वी अफ्रीका में  सूखा पड़ने की प्रबल संभावना है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के तल पर दबाव बढ़ता है और वायुमंडल में जलवाष्प का लेवल बढ़ता है इससे गर्मी के मौसम में कुछ क्षेत्रों में अधिक  वर्षा  होती है और कुछ क्षेत्रों में वर्षा नहीं  होती  है।

 

  • बढ़ते तूफान और समुद्र तल का बढ़ना:

जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल का तापमान बढ़ता जाता है जिससे ध्रुवों पर जमी बर्फ  और ग्लेशियर पिघल रहे हैं  जिसके कारण समुद्र के तल पर वृद्धि देखने को मिलती है।  कम वायुदाब के कारण समुद्र के तल में वृद्धि होती है और कोस्टल रीजन में ऊँची  समुद्री लहरे उठती हैं तो  समुद्री तटों पर बसे शहरों  में तूफानी लहरों से बाढ़ आ जाती है। यह स्थिति घंटों से लेकर कई दिनों तक दिखाई देती है।

  • लंबे समय तक जलवायु ट्रेंड्स:

जलवायु परिवर्तन के कारण, ग्रीनहाउस गैसों  में तेजी  आई है। इस कारण उन्नीसवीं सदी में प्रति दशक औसतन 0.08 °C  की दर से वायुमंडल का तापमान बढ़ता गया है। इसके परिणामस्वरूप पिछले  50 वर्षों में, महासागर एक बड़े ऊष्मा भंडार बन गये हैं।  यह महासागर  पृथ्वी के अधिकतर तापमान को सोख लेते हैं 1950 और 2020 के बीच, समुद्री सतह का तापमान  0.11 °C  बढ़ गया है। महासागरों के गर्म होने से पर्यावरण और जलवायु  काफी हद प्रभावित  होती है।

 

5. भविष्य की चुनौतियाँ और जलवायु परिवर्तन

  • महासागर का तापमान बढ़ना:

महासागरों के  तापमान  बढ़ने से जलवायु परिवर्तन होता है। इससे महासागरों का विस्तार होता है। और पृथ्वी पर आक्सीजन की कमी होती है।  समुद्र के तल में  वृद्धि से तूफानों की आवृत्ति और तीव्रता दोनों में बढोतरी होती है। वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड और मोनोक्साइड गैसें बढती हैं और ग्रीनहाउस गैसों का ज्यादा निर्माण होता है। जिससे  मौसम और जलवायु में  एक्सट्रीम चेंज देखने को मिलता  है। समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण  वैश्विक समुद्री इको सिस्टम प्रभावित होता है। मौसम का पैटर्न  बदलता  है। इसका सबसे बड़ा असर खाद्य आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।  इससे मानव जीवन के स्वास्थ्य पर खतरे बढ़ रहे हैं।

  • अम्लीयकरण और परिस्थितिकीय असर:

जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल में  कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती है इससे वायुमंडल में उपस्थित वाष्प में यह कार्बनडाइऑक्साइड घुलकर अम्लीय वर्षा का कारण बनती है। समुद्र के अम्लीय करण से समुद्र का इको सिस्टम बिगड़ जाता है।  और इसका असर समुद्री जीवों और वनस्पति पर पड़ता है। आपके लिए इसका बुरा प्रभाव  खाद्य सुरक्षा को लेकर आता है।

  • भविष्य के मौसम पैटर्न की भविष्यवाणी:

भविष्य़ में मौसम के पैटर्न में  बदलाव धीरे-धीरे बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।  वैज्ञानिक इसके लिए चिंता कर रहे हैं कि मौसम के बदलने से कैसे मानव और दूसरे प्राणियों का जीवन सुरक्षित  रहेगा। क्योंकि इसके असर पूरे विश्व पर पड़ेंगे।  जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल में नये नये बदलावों से मौसम वैज्ञानिकों को पूर्वानुमान लगाने और भविष्यवाणी करने की नीतियों में  बदलाव की चुनौतियों का सामना करना पडेगा।