मौसम का नवीकरण ऊर्जा पर प्रभाव

ऊर्जा की बढ़ती मांग आपको ऊर्जा उत्पादन के पारंपरिक श्रोतों के साथ-साथ गैर परम्परागत सोर्सेज से भी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बाध्य करते हैं।  इसलिए सरकारें ऊर्जा उत्पादन के वैकल्पिक संसाधनों की ओर तेजी से रुख कर रही हैं।  इन गैर परंपरागत उर्जा उत्पादन स्रोतों पर मौसम का बड़ा प्रभाव पड़ता है।

1. सौर ऊर्जा उत्पादन और मौसम की स्थिति

सौर ऊर्जा के उत्पादन में मौसम का साफ रहना जरूरी  है। क्योंकि साफ दिनों (sunny days) में  सूर्य की किरणें आसानी से पृथ्वी तक पहुँचती हैं।

 

  • बादलों का आवरण और सौर दक्षता:

बादलों के कारण सूर्य की किरणें सीधे धरती पर नहीं  पहुँच पाती हैं  इसलिए सौलर पैनल पर्याप्त विकिरण नहीं कर पाते हैं  इसलिए  बरसात के मौसम और सर्दी के मौसम में  कुहरे की वजह से आसमान साफ नहीं  रहता है। जिससे  आपके सौलर पैनल पूरी क्षमता से हीट एनर्जी नहीं  पाते हैं और उनकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।

  • तापमान का असर:

बहुत अधिक तापमान होने पर भी ऊर्जा उत्पादन में कमी आती है ऐसा इसलिए होता है कि अधिक  तापमान पर इलेक्ट्रॉन बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं  जिसके कारण प्रतिरोध (resistance) बढ़ जाता है और वोल्टेज कम हो जाता है इससे  उत्पन्न बिजली की मात्रा कम हो जाती है।  दूसरी तरफ आप  देखेंगे कि बहुत कम तापमान में भी सौर पैनल की दक्षता को भी कम करती है।

 

  • मौसमी बदलाव:

आप जानते हो कि मौसम में बदलाव के कारण सूर्य से पृथ्वी की दूरी  बदलती है। इस बदलाव के कारण सूर्य की किरणें पृथ्वी पर अलग-अलग एंगल पर पड़ती हैं।  इसी तरह  आप देखते होंगे कि दिन के समय  सुबह और शाम के समय सूर्य की किरणें सौलर पैनल पर ज्यादा तिरछी पड़ती हैं। इसलिए प्रकाश की किरणों का परावर्तन कम हो जाता है जबकि दोपहर के समय सूर्य की किरणें सौलर पैनल पर ज्यादा सीधी पड़ती हैं  इससे ज्यादा हीट उत्पन्न होती है और रेजिस्टेंस कम हो जाता है। इस दशा में बिजली ज्यादा उत्पन्न होती है।

 

 2. पवन ऊर्जा और मौसम की गतिशीलता

पन बिजली का उत्पादन ऐसी जगहों पर किया जाता है जहां हवाएं गतिशील रहती हैं।

  • हवा की गति की परिवर्तनशीलता:

आप जानते हो कि जब हवा चलती है तो पन विद्युत ऊर्जा के  टरबाइन ब्लेड घूमने लगते हैं। यह ब्लेड्स  गियरबॉक्स के द्वारा जनरेटर को चलाते हैं। जेनरेटर इस ऊर्जा को इन्वर्टर के जरिए  बिजली में परिवर्तित करता है। यह पवन टरबाइन 15 मीटर/सेकेंड की गति से चलने वाली हवा के समय सबसे अधिक ऊर्जा पैदा करते हैं। लेकिन 4-5 मीटर प्रति सेकंड की हवा की गति से चलने लगते हैं  और 25 मीटर प्रति सेकंड की हवा की गति पर यह काम करना बंद कर  देते हैं।

  • तूफान और अशांति:

क्या आप जानते हैं कि आँधी और तूफान आने की दशा में पवन टरबाइन बंद हो जाते हैं? शायद  आप यह सोंचते होंगे कि  तेज आँधी और तूफान आने पर टरबाइन ब्लेड  तेज घूम रहे हैं  तो ज्यादा बिजली बनाते होंगे। लेकिन ऐसा नहीं  होता है। यह ब्लेड्स के घूमने की गति 5 -25 rpm होनी चाहिए।  जबकि जेनरेटर 1000-2000 rpm पर चलता है। ब्लेड्स के शाफ्ट में लगा गियर ब्लेड्स की गति को बढ़ाकर जनरेटर को चलाता है।

  • भौगोलिक प्रभाव:

भौगोलिक स्थितियां विंड एनर्जी के उत्पादन को प्रभावित करती हैं।  पहाड़ियों की चोटियाँ, खुले मैदान और तटीय इलाकों में हवा लगातार प्रवाह होता है। आपकी जानकारी के लिए बता देता हूँ कि पृथ्वी की सतह से पवन टरबाइन के ब्लेड  जितनी अधिक ऊँचाई पर होंगे वहाँ हवा की गति सामान्य से उतनी ही अधिक होगी। लोकल मौसम का विंड एनर्जी पर समान रूप से प्रभाव पड़ता है जैसे तटीय इलाकों में हवाएं तेज गति से चलती हैं  इसलिए वहाँ बड़े पवन टरबाइन लगाये जाते हैं जो 50-60 rpm पर ब्लेड को घुमाते हैं।  इसलिए उनकी डिजाइन अलग होता है  जबकि मैदानी इलाकों में हवाएं की गति सामान्य तौर पर कम रहती है इसलिए वहाँ कम क्षमता के पवन टरबाइन स्थापित किये जाते हैं।

 

3. जलविद्युत और मौसम प्रभाव

हाइड्रो एनर्जी पर  सूखे और बाढ़ के  मौसम का प्रभाव देखा  जाता है।  सूखा पड़ने पर ऊर्जा उत्पादन कम हो जाता है।

 

  • वर्षा का स्तर:

वर्षा और बर्फ के पिघलने से पानी का बहाव बढ़ता है। ऐसे में पहाड़ी क्षेत्रों में बने हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट के इनकैचमेंट जलाशयों में पानी का लेवल बढ़ा रहता है। डैम के निर्धारित लेवल से ऊपर जब पानी जाने लगता है तो डैम के गेट खोल दिए जाते हैं।  इससे डैम के डिजाइन लेवल से ऊपर पानी स्टाॅक नहीं  होता है। और डैम सुरक्षित रहते हैं।

  • सूखे की स्थिति (Drought Conditions):

किसी  क्षेत्र में लंबे समय तक सूखा पड़ने के कारण  वहाँ के डैम इनकैचमेंट जलाशय में पानी का स्तर घटता रहता है  इसलिए ऐसे हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट से ऊर्जा उत्पादन कम होने लगता है। भारत में ऐसा एक दो बार हो चुका है। और वेनेजुएला में भी यह स्थिति पैदा हुई जब वहाँ 2-3 साल तक मानसून नहीं  आया तो उनके पावर प्लांट बंद हो गये।

 

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव :

जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा और बाढ़ की  स्थिति बनती है। इस कारण से ग्लेशियर पिघलता हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ने लगता है। तो जिन क्षेत्रों के हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट के इनकैचमेंट जलाशय में  ग्लेशियर के पिघलने से पानी जमाए होता है वहाँ तो वाटर लेवल बना रहता है लेकिन जो इलाके केवल वर्षा जल पर ही निर्भर हैं  वहाँ बारिश न होने के कारण जलाशयों में पानी का स्तर घटता रहता है इसलिए वहाँ  के पावर प्लांट की ऊर्जा उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।

 

4. भूतापीय ऊर्जा और मौसम कारक

भूतापीय ऊर्जा गर्मी और सर्दी दोनों में काम करती है। क्योंकि यह  सूर्य या हवा पर निर्भर नहीं होती है।

 

  • सतह की दशा:

भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी से निकली हुई ऊष्मा के ऊपर निर्भर होती है। इसके लिए सतह पर उपलब्ध द्रव का तापमान 150°सेल्सियस होना चाहिए।  जबकि प्लांट 99° सेल्सियस पर ही काम करने लगते हैं।  आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि भू- तापीय द्रव  में मिनरल्स और गैसें न हों। इन तरल द्रवों के भंडारण के लिए कम गहराई वाले  जलाशय होने चाहिए।

 

  • दीर्घकालीन जलवायु प्रवृत्तियाँ :

वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण भूतापीय ऊर्जा से जुड़े दो प्रमुख चिंता के विषय होते हैं।  इसके अलावा और बिन्दु जिन पर आपका अधिक ध्यान जाना चाहिए वह है कि खतरनाक कचरा। इस कचरे के सुरक्षित डिस्पोजल के लिए उचित  स्थान का चुनाव करना। भूतापीय विद्युत संयंत्रों को ठंडा करने के लिए बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होती है तो दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिल सकता है।  क्योंकि इतनी मात्रा में पानी की उपलब्धता एक बड़ा प्रश्न आपके सामने खड़ा होगा।

 

  • मौसमी मांग में उतार चढ़ाव :

सीजनल बदलाव से  जियोथर्मल प्लांट के  कूलिंग में  पानी की खपत प्रभावित होती है। कम तापमान वाले मौसम में  भूतापीय संयंत्र पृथ्वी के स्थिर तापमान को भवन को गर्म करने के लिए प्रयोग करते हैं। इसलिए जमीन के तापमान का मौसमी डिमांड पर असर पड़ता है।  आप यह जान लीजिए कि जमीन से  भूतापीय ऊष्मा निकालने के लिए पंप्स (pumps)  को डिज़ाइन किया जाता है। इसलिए जहाँ तापमान शून्य से नीचे रहता है उन इलाकों में इस ऊष्मा का  उपयोग आपके घर को गर्म करने के लिए किया जाता है।

 

5. मौसम पूर्वानुमान को नवीकरणीय ऊर्जा प्रबंधन के साथ एकीकृत करना

 

  • पूर्वानुमान विश्लेषण:

मौसम पूर्वानुमान के आधार पर आप नवीकरणीय ऊर्जा सोर्सेज का प्रबंधन कर सकते हैं। अगर आप यह जान जाएँ कि आपके एरिया में बहुत ठंड पडने वाली है तो आप अपने घरों को गर्म  रखने  के लिए नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रो का प्रबंध पहले से कर लेंगे। इसके लिए ऊर्जा भंडारण के लिए गैस,  सौर ऊर्जा, बैटरी ऊर्जा जैसे  नवीकरणीय  ऊर्जा  सिस्टम्स और अन्य घटकों का उपयोग शामिल  है।

 

  • ग्रिड स्थिरता और विश्वसनीयता:

सही मौसम पूर्वानुमान आपको  अपने ऊर्जा उत्पादन संयंत्रो समय से पहले ठीक करके पर्याप्त ऊर्जा का उत्पादन कर सकते हैं  जिससे  आपको पावर सप्लाई ग्रिड की स्थिरता बनी रहेगी। ऐसी स्थिति में आप अपने बंद पड़े पावर प्रोडक्शन यूनिट्स को रिपेयरिंग करके आपरेशन कर लेंगे।  इससे पावर सप्लाई निर्बाध गति से चलती रहेगी। और उपभोक्ताओं को कोई  परेशानी  नहीं  होगी। आप  देखते होंगे कि गर्मियों में अक्सर ग्रिड फ़ेल होते हैं।  क्योंकि अधिक गर्मी के कारण  सभी लोग एसी और कूलिंग उपकरणों को चालू कर देते हैं  जिससे  ग्रिड पर लोड बढ़ता है और ग्रिड फ़ेल होता है।  मौसम का सटीक पूर्वानुमान और आपकी प्रिडिक्टिव तैयारी इस समस्या से निपटने सकती है।

 

  • मांग प्रतिक्रिया रणनीतियां:

मांग प्रतिक्रिया से आप बिजली की बढ़ती मांग और खपत को पूरा कर सकते हैं। अगर आपको पहले से पता हो कि आपके क्षेत्र में ऊर्जा की खपत और माःग कितनी होने वाली है तो आप अपनी रणनीतिक तैयारी उस तरह की करके समस्या हल कर सकते हैं।  मौसम के डेटा इनपुट के आधार पर आप नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रो का उपयोग करके  भी डिमांड को पूरा कर सकते हैं।