मौसम और मानव स्वास्थ्य

मौसम का मनुष्य के स्वास्थ्य पर सीधे सीधे प्रभाव पड़ता है। इसीलिए आदिकाल से मनुष्य ने मौसम के अनुसार अपने जीवन को जीने का तरीका ढूँढा। मनुष्य के स्वास्थ्य अच्छा का रहना एक ऐसी अवस्था होता है  जिसमें वह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से अच्छे ढंग से काम करने में समर्थ होता है। आप जिस वातावरण में रहते हैं, उसमें रहने के आप आदी हो जाते हैं और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग  कर सकते हैं।

 

1. अत्यधिक तापमान का प्रभाव

हमारे एशिया महाद्वीप में सामान्य तौर पर तीन तरह के मौसम होते हैं।  सर्दी, गर्मी और बरसात।  नवम्बर से फरवरी तक सर्दी और मार्च से जून तक गर्मी और जुलाई से अक्टूबर तक बरसात का मौसम रहता है।

  • गर्मी से संबंधित बीमारियां :

मई और जून के महीने में विकट गर्मी पड़ती है।  इस अत्यधिक गर्मी के मौसम में लोग हीट स्ट्रोक के अक्सर शिकार हो जाते हैं। तेज धूप में  ज्यादा समय तक बाहर रहने पर लू लगने का खतरा बढ़ जाता है। कई बार आपको त्वचा के झुलसने  (skin burn) का सामना करना पड़ता है।  अधिक तापमान में वायु में विभिन्न गैसों के कण बहुत गतिशील  हो जाते हैं।  जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकता हैं और आपको बीमार बनाते हैं।

  •  शीतकालीन खतरे 

दूसरी तरफ ठंड के  मौसम में भी आपको सर्दी के कारण कई दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है जैसे;

हाइपोथर्मिया : जब आपके शरीर में कंपकंपी, भ्रम और थकान जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।  हाइपोथर्मिया आपके लिए घातक हो सकता है।

शीतदंश : जब आपके शरीर की त्वचा के टिश्यू जमने लगते हैं। ऐसा तब होता है  जब आप  ठंडे मौसम में  एक लंबे समय तक रहते हैं  या फिर बहुत कम या माइनस डिग्री तापमान में आप कुछ  मिनट तक  भी बाहर खुले वातावरण में रहते हो और आपके शरीर की त्वचा ठंड के सीधे संपर्क में आ जाती है।

अधिक ठंडे मौसम में हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है, क्योंकि ठंड के कारण आपकी रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं, जिससे आपका रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है और आपके शरीर में रक्त संचार कम हो जाता है। अधिक ठंड के मौसम में, कार्बन मोनोऑक्साइड के जहरीलेपन का खतरा बढ़ जाता है। जिसके कारण आपके मस्तिष्क को नुकसान होता है और कभी-कभी मृत्यु भी होने का खतरा बढ़  जाता है।

  • अति शीतघात : सर्दी और गर्मी में  आपको अपने परिवार के बुजुर्गों, बच्चों, बीमार और कमजोर लोगों को मौसम की मार से बचाने के लिए सभी उपाय पहले से ही कर लेने चाहिए।  इन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता  (body resistance) कम हो जाती है। इसलिए सर्दी और गर्मी के मौसम में ऐसे कमजोर लोगों को बाहर खुले वातावरण में नहीं जाने देना चाहिए।  अगर बहुत जरूरी हो जाए तो उनके साथ पर्याप्त बचाव के साधन के साथ ही बाहर जाने देना चाहिए।

 

2. मौसम और श्वसन स्वास्थ्य

  • वायु गुणवत्ता में बदलाव : किसी मौसम में जब तापमान में परिवर्तन होता है तो आप अनुभव करेंगे कि आपको सांस से संबंधित समस्याएं बढ़ जाती हैं। हवा में नमी के लेवल में परिवर्तन के कारण ऐसा होता है। इस वजह से  वायु प्रदूषण और अस्थमा जैसी श्वसन संबंधी बीमारियां बढ़ती हैं। मौसम के उतार चढ़ाव के कारण वायु की क्वालिटी खराब होती है। और  आपके आसपास के शहरी क्षेत्रों में, जहां नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर जैसे प्रदूषण फैलाने वाले तत्व अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं।

खराब वायु की क्वालिटी को आजकल आप समाचारों में AQI (Air Quality Index) के नाम से सुनते हैं। जब यह AQI का लेवल बढ़ जाता है तो आप सांस लेने में तकलीफ अनुभव करते हैं।

  • वायु में  पराग और एलर्जी :

गर्मी में पराग कणों का लेवल आमतौर पर अधिक रहता है। तेज हवा चलने से पराग कणों का लेवल बढ़ जाता है जो पराग कणों को आपके श्वसन तंत्र तक आसानी से पहुंचाता है।  तो वही बरसात के मौसम में ये पराग कण धुल जाते हैं, लेकिन वर्षा से पैदा हुई नमी के कारण फफूंद की मात्रा बढ़ जाती है। पराग कणों के कारण एलर्जी होने पर आपको नाक बहने या बंद होने के साथ छींकने की समस्या खड़ी हो जाती है, आपकी नाक, आंख, कान और मुंह के आसपास  खुजली होती है, आपकी आँखें लाल और पानी भरी हो जाती हैं और आँखों के आसपास सूजन बढ़ जाती है, आपको सांस लेने कष्ट  होता है गले में  घरघराहट होती है, खाँसी आती है।

  •  सांस संबंधी संक्रमण :

ठंडा और नम मौसम आपको  कई तरह से कफ, कोल्ड और फ्लू जैसे सांस के संक्रमणों के खतरों को बढ़ा देता है। जैसे-

  • ठंड के मौसम में  बलगम(Mucus) का बनना।  जो श्वसन तंत्र को जाम कर देता है।
  • दूसरा खतरा आपके नाक से लेकर फेफड़ों तक का रास्ता सिकुड़ने या कफ जमने के कारण नलियाँ सँकरी हो जाती हैं। 
  • आपके गले में घरघराहट और सूजन आ जाती है।
  • आपके शरीर का बाॅडी रेजिस्टेंस कम हो जाता है
  • आपके शरीर में संक्रमण(infection) का खतरा बढ़ जाता है आप जितना अधिक  ठंड के संपर्क में रहेंगे, संक्रमण का खतरा उतना ही अधिक बढ़ जाएगा।
  • आपके घर या पब्लिक प्लेस या पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अत्यधिक ठंडे मौसम में एकत्र होते हैं, जिससे संक्रामक रोगों को फैलने का मौका  मिलता है।

 

3.स्वास्थ्य पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव

  • शारीरिक चोट :

गर्मियों में आँधी, तूफान, बवंडर और जंगल में आग लगने के जैसी गंभीर घटनाएं होती हैं।  इन घटनाओं से आपको  शारीरिक चोट लग सकती है  उसी तरह से बरसात के मौसम में बाढ़ से आपके आसपास खतरे बढ़ जाते हैं जिससे  बचने के लिए मौसम विज्ञान विभाग की ओर से एडवाइजरी भी जारी की जाती है।  बरसाती मौसम में बाढ़ के कारण सबसे ज्यादा निम्नलिखित  खतरे रहते हैं;

  1. नदियों में बाढ़ का पानी कई इलाकों में भर जाता है जिससे सीधा डूबने का खतरा बढ़ जाता है।
  2. जहरीले कीड़े, सांप, बिच्छू के काटने का खतरा बढ़ जाता है।
  3. एक और खतरा बाढ़ में  यह होता है कि कई बार रेस्क्यू करने के समय असावधानी या लापरवाही से किसी की  मौत हो जाती है।

इसी तरह से आँधी और तूफान आने पर भी कई तरह के खतरे बढ़ जाते हैं जैसे-

  1. जंगल में आग लगने से आपके जलने का रिस्क रहता है अगर आप जंगल विजिट पर हैं तो।  इसके अलावा जानवरों के जानमाल का नुकसान होता है।
  2. तेज आँधी,  तूफान और चक्रवात आने पर तमाम खतरे पैदा हो जाते हैं जैसे पेड़ उखड़ना, बिजली के खंभे गिरना, मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स का गिरना आदि इसमें  भी आपकी जानमाल का नुकसान हो सकता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य की परेएशानी :

प्राकृतिक आपदाओं में जन -धन हानि को देखकर बहुत लोग मानसिक बीमारी के शिकार हो जाते हैं। आप लोगों को चिंता, अवसाद और भारी चोट के बाद तनाव विकार (post traumatic stress disorder (PTSD) से पीड़ित देखते होंगे।

शोधकर्ताओं ने बताया है कि प्राकृतिक  आपदाओं के कारण एक तिहाई से अधिक लोगों में मानसिक तनाव की स्थिति बन जाती है।  कुछ लोग तो कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों के यह एक लाइलाज बीमारी  बन जाती है।

  • लंबे समय के स्वास्थ्य प्रभाव :

प्राकृतिक आपदा के कारण होने वाले लंबे समय के प्रभावों में  आप मानसिक अवसाद, चिंता, एंजाइटी  और सिज़ोफ्रेनिया जैसी भयंकर बीमारी के शिकार हो सकते हैं ये बीमारियां आपकी  मानसिक स्वास्थ्य की  परिस्थितियों को भी खराब कर देती हैं। जिसके परिणामस्वरूप  आत्महत्या, लत (addiction) और दूसरी शारीरिक  स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।

 

4. जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य जोखिम

  • चरम मौसम की बढ़ती आवृत्ति :

किसी स्थान पर एक्सट्रीम मौसम के बार बार वापस आने से  वहाँ के लोगों का जीवन अस्त -व्यस्त हो जाता है। जलवायु संबंधी  घटनाएं, जैसे हीट वेव, चक्रवात और बाढ़ आदि के कारण, जंगल में आग लगने की घटना, तमाम तरह की बीमारियां और बढ़ती मृत्यु दर का कारण बनती हैं। जो आपके  मानसिक स्वास्थ्य पर उल्टा असर डालती हैं।

  • वेक्टर जनित रोग :

जलवायु परिवर्तन वेक्टर जनित रोग जैसे  डेंगू, मलेरिया दिमागी बुखार आदि  को   फैलने  का अनुकूल माहौल मिलता है। इस वजह से उन बीमारियों का  भौगोलिक विस्तार होता है। जैसे आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही  डेंगू का संक्रमण  बढ़ गया। अब इसका प्रभाव ठंडे देशों में कम है, लेकिन मीडियम टेम्परेचर वाले देश ब्राजील, होंडुरस और निकाला जैसे देशों में इसका प्रभाव काफ़ी ज्यादा बढ़ गया है।

  • खाद्य और जल सुरक्षा :

हमारे पृथ्वी ग्रह पर जल ही जीवन है। इसी से हमारे भोजन का उत्पादन होता है। इस भोजन में पौष्टिकता हो इसके लिए जल भी उत्तम क्वालिटी का होने चाहिए।  जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे जल और खाद्य दोनों की क्वालिटी खराब  होती है और यह खराब क्वालिटी का जल और भोजन हमारी वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की खाद्य सुरक्षा और पोषण को प्रभावित  करता है। जल से ही खाद्य उत्पादन जैसे मछली, फसल और पशुओं का उत्पादन और प्रोसेसिंग होती है। इसलिए अच्छी क्वालिटी का प्रचुर मात्रा में पानी आवश्यक है।

 

5. स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए निवारक रणनीतियाँ

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान :

इस अभियान के  माध्यम से आप समाज  में  लोगों को शिक्षित करके और ट्रेनिंग देकर जागरूक करके उनके व्यवहार को  बदल सकते हैं। जैसे  ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो। यह जन जागरण  उनमें परिवर्तन लाएगा और पूरे समाज के व्यवहार को बदलने में मदद कर सकता हैं। समाज को आप  मौसम संबंधी  स्वास्थ्य खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील और सजग बना सकते हो। क्योंकि इन खतरों के शिकार सबसे पहले  बच्चे, गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग लोग तथा विकलांग या पहले से ही बीमार लोग होते हैं।

यह जन जागरूकता फैलाने के लिए आप निम्न तरीकों को अपना सकते हैं;

  • इलेक्ट्रानिक, प्रिंट, सोशल मीडिया  आदि जैसे  मल्टीमीडिया का सहारा लेकर।
  • पोस्टर प्रतियोगिता का स्कूल और कालेज में आयोजन करके।
  • लोकल बाजार, हाट, मॉल, मेले और कम्युनिटी सेन्टर में सभा, मीटिंग और नुक्कड़ नाटक करके।
  • रेडियो या टेलीविजन स्टेशनों पर कार्यक्रम दे करके।

 

  • आपातकालीन तैयारी :

एक्सट्रीम मौसम के आने से पहले मौसम विभाग हमें उस परिस्थिति का सामना करने के लिए चेतावनी देता है। और सरकार हमें  तैयार रहने के लिए तैयार करती  है। लेकिन आपको भी अपनी व्यक्तिगत और परिवारिक जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले आपको यह डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान बना लेना चाहिए।  जिसमें आप निम्न तरीकों को अपना सकते हैं;

  • सभी जानकारी इकट्ठा करें, अपने एरिया के लिए वार्निंग, अलर्ट सिग्नलों पर ध्यान रखें और इमरजेन्सी सूचनाओं के लिए तैयार रहें।
  • घटना के बाद अपने और परिवार को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षित स्थान का चुनाव कर लें।
  • परिवार को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा किट तैयार करें। घर और परिवार का इंश्योरेंस करवा लें।

 

सामुदायिक लचीलेपन(रेजीलेंस) की पहल :

जलवायु परिवर्तन आपके सामने आने वाले खतरों को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। इसलिए आपको ऐसे खतरों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।  इसमें आपकी मदद सरकार और लोकल संगठन कैसे कर सकते हैं यह आपको  पता होना चाहिए। आप निम्न तरीकों से सरकार और लोकल संगठन का सहयोग पा सकते हैं;

  • आपकी तैयारी: आपको बदलती परिस्थितियों के अनुसार सरकार की गाइडलाइन फालो करके अपनी तैयारी करनी चाहिए।
  • लोकल कम्युनिटी को सशक्त बनाकर  स्थानीय स्तर पर आप अपने समुदाय के लोगों को तैयार करें और इस तैयारी में  सरकार और लोकल संगठनों का सहयोग लें।
  • वैज्ञानिक जानकारी का उपयोग करें सरकार की तरफ से जारी होने वाली एडवाइजरी को गंभीरता से स्वीकार करें। इसके लिए स्थानीय मौसम, जल और जलवायु स्थितियों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी का उपयोग करें

टेक्नोलॉजी का उपयोग करें : सरकारी, निजी और एनजीओ के सोशल मीडिया और नई आधुनिक तकनीक का उपयोग करें।