आप जानते हैं कि हमारे देश में एक वर्ष में दो-दो महीने की छः ऋतुएँ और चार-चार महीने के तीन मौसम होते हैं। आप यह भी जानते होंगे कि भारत की अधिकतम आबादी गाँवों में रहती है। हमें यह भी पता है कि भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। पुराने समय में कृषि को सम्मान जनक व्यवसाय कहा जाता था। इसीलिए रहीमदास जी ने कहा था;
“उत्तम खेती, मध्यम बान। निपट चाकरी, भीख निदान।।”
परन्तु आज की बदली हुई परिस्थितियों में यह पैटर्न उल्टा हो गया है। अब नौकरी को उत्तम व्यवसाय और खेती को निम्न दर्जे का व्यवसाय माना जाता है। हमारे अन्नदाता किसानों की हालत अच्छी नहीं रहती क्योंकि वह मौसम की मेहरबानी पर खेती करते हैं। अगर अच्छी बारिश न हुई तो किसान की फसल चौपट। और अगर सूखा या बाढ़ आ जाए तो किसान की फसल बर्बाद हो जाती है।
किसानों की मौसम पर निर्भरता सीमित करने के लिए मौसम विज्ञान विभाग और कृषि विभाग में बेहतर समन्वय बनाने के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग ने कृषि क्षेत्र को विकसित करने और खेती में सुधार लाने के किसानों को मौसम संबंधी सेवाएं देने के लिए, 1932 में पुणे में कृषि मौसम विज्ञान का एक स्पेशल सेल स्थापित किया था। यह कृषि मौसम विज्ञान केन्द्र, किसानों को कृषि और खेती के तरीकों में मौसम के अनुकूल पूर्वानुमान और सुझाव देने का काम करता है। यह केन्द्र कृषि के लिए भविष्य में मौसम की स्थिति और उसके अनुसार फसलों, पशुओं, और अन्य कृषि संबंधी गतिविधियों पर अपने सुझाव और चेतावनी देता है जिससे कि किसानों को मौसम के दुष्प्रभाव से बचाया जा सके। और किसानों को मौसम की पहले जानकारी दी जा सके जिससे कि वह अपनी फसल का प्लान बना सकें।
मौसम विज्ञान विभाग की कृषि के लिए मौसम संबंधी सेवाएं
पुणे स्थित कृषि मौसम विज्ञान सेल देश के किसानों को सीधे अपनी सेवाएँ प्रदान करता है। यह केन्द्र, फसलों पर प्रतिकूल मौसम के प्रभाव को कम करने एवं किसानों की कृषि उपज को बढ़ाने के लिए अनुकूल मौसम का उपयोग करने के उद्देश्य से, पूर्वानुमान और भविष्यवाणी करता है।
यह केन्द्र कृषि के लिए;
- ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के कौशल विकास की सेवा देता है।
- कृषि योग्य अनुकूल मौसम के लिए सहायता, सलाह और चेतावनी देता है।
- कृषि मौसम सेवा का फीडबैक इकट्ठा करके उनका विश्लेषण करने के बाद ग्रामीण किसानों में जागरूकता पैदा करने के प्रोग्राम संचालित करता है।
- कृषि मौसम के लिए फील्ड वर्करों को प्रशिक्षण देने के कार्यक्रम बनाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य फसलों पर प्रतिकूल मौसम के प्रभाव को कम करना और कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए फसल और मौसम के बीच संबंधों को मजबूत करके मौसम केन्द्र की सेवाओं का उपयोग करना है। यह कृषि मौसम विज्ञान में अनुसंधान कार्यक्रमों का केंद्र भी है और देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी कई क्षेत्र इकाइयाँ हैं। इसके अलावा, विभिन्न राज्यों की राजधानियों में स्थित भारत मौसम विभाग के केंद्र बनाए गये हैं। इस केन्द्र की कृषि के लिए मौसम संबंधी सेवाओं को समर्पित एक वेबसाइट बनाई गई है जिस पर सीधे सभी जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं।
कृषि मौसम विज्ञान की शुरुआत
भारत में कृषि के लिए मौसम विभाग में काम करने वाले एक भारतीय भौतिक व मौसम विज्ञानी एल. ए. रामदास ने कृषि मौसम विज्ञान की शुरुआत की थी। उन्होने फसल मौसम कैलेंडर बनाया जो भारत के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में फसल की वृद्धि के चरणों में हानिकारक मौसम की जांच करते थे। इससे फसलों को मौसम की मार से बहुत हद तक बचाया जाने लगा। उन्होंने फसलों के लिए पारिस्थितिकी प्रणालियों में सूक्ष्म जलवायु, मिट्टी-पानी के संबंधों के अलावा फसलों के लिए मौसम के साथ कीट और रोग संबंधों का भी अध्ययन किया। उनके इन प्रयासों से कृषि को तमाम तरह के कीटाणुओं और कीट- पतंगों से बचाया जाना संभव हो सका है।
कृषि मौसम विज्ञान का महत्व
कृषि मौसम विज्ञान, कृषि के लिए मौसम का अध्ययन करता है और देश के अलग-अलग हिस्सों में कृषि फसलों को मोटिवेट करने, उपज बढ़ाने या कृषि के विस्तार करने या फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए मौसम और जलवायु की जानकारी का उपयोग करता है। और किसानों को मौसम की जानकारियों से परिचित कराता है। कृषि मौसम विज्ञान में मुख्य रूप से एक तरफ मौसम संबंधी और जल विज्ञान संबंधी कारकों की एक दूसरे के साथ क्रिया और प्रतिक्रिया शामिल है। दूसरी तरफ यह केन्द्र कृषि, बागवानी, पशुपालन आदि के बारे में भी अपने पूर्वानुमान और भविष्यवाणी करता है। यह कृषि मौसम विज्ञान, बदलती हुई वैश्विक जलवायु में वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने में भी मदद करता है।
निष्कर्ष
मौसम का कृषि पर असर अवश्य पड़ता है। 40-50 साल पहले तक कृषि मौसम पर ही निर्भर थी। परन्तु अब ऐसी स्थिति नहीं है। अब मौसम विज्ञान ने काफी प्रगति कर ली है। इसलिए मौसम विज्ञान विभाग की परामर्श और चेतावनी लेकर कृषि के क्षेत्र में बहुत सुधार किया जा चुका है। कृषि मौसम विज्ञान केन्द्र किसानों को उनके क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार उचित फसल की खेती करने की सलाह देते हैं। सिंचाई, फर्टिलाइजर और कीटनाशकों के अनावश्यक उपयोग को रोकते हैं और आर्गेनिक खेती करने की सलाह देते हैं जिससे कि खेत की मिट्टी की उर्वरता बनी रहे। और कृषि उपज में सुधार हो सके।