मौसम और इंफ़्रास्ट्रक्चर

मौसम का इंफ़्रास्ट्रक्चर पर असर पड़ता है। ऐसा देखा जाता है कि गर्मी में  प्रसार (expansion), सर्दी के मौसम में संकुचन (contraction) और बरसात के मौसम में मिट्टी का कटाव और बहाव होने के कारण रेल और रोड का इंफ़्रास्ट्रक्चर टूट जाता है जिसके कारण दुर्घटनाएं होती हैं।

 

1. बुनियादी ढांचे पर चरम मौसम का प्रभाव

  • बाढ़ और पानी से नुकसान :

बरसात के मौसम में भारी वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति बन जाती है जिससे सड़कों और पुलों को बहुत नुकसान होता है।

  • सड़क की क्षति
  •  बारिश का पानी सड़कों के नीचे की ड्रेनेज लेयर  को नष्ट कर देता है। जिससे सड़क के वह हिस्सा बाढ़ के पानी के वेग में बह जाता है। इसके अलावा सड़क की सबसे ऊपरी सतह जो बिटुमिनस मैटेरियल से बनती है वह भी क्रैक करने लगती है। इससे सड़क की भार सहन करने क्षमता कमजोर हो जाती है। और सड़क में  जगह जगह दरारें पड़ जाती हैं और गड्ढ़े हो जाते हैं।
  • पुलों  की क्षति

बरसात में पानी और मलबे का दबाव पुल की ब्रेसिंग सिस्टम को तोड़ देता है जिससे सुपर स्ट्रक्चर के नीचे का आधार अपनी जगह से हट जाता है। इससे पुल का स्पान गिर जाता है इसके अलावा पुल के एबटमेंट और सड़क का एप्रोच भी बाढ़ के बहाव में कट जाता है।  infrastructure

  • ऊष्मा और मैटेरियल फटीग :

गर्मियों में अत्यधिक तापमान के कारण रेल और सड़क के मैटेरियल्स में विस्तार होता है। अगर धातुओं के विस्तार के लिए पर्याप्त गैप नहीं  छोड़ा गया तो रेल की पटरियों और सड़क के धातुओं से  बने ब्रिज में बकलिंग और मुड़ने का खतरा बढ़ जाता है।  सड़क के बिटुमिनस मैटेरियल में उच्च तापमान पर ऊपरी सतह नरम होकर फैल जाती है। और सरफेस की स्ट्रेंथ कमजोर होने से सड़क टूट जाती है। उसमें गड्ढे पड़ जाते हैं।

  • बर्फबारी  और बर्फ का जमाव :

सर्दियों में जहाँ पर भारी बर्फबारी होती है वहाँ सड़कों पर बर्फ की मोटी लेयर जम जाती है इससे यातायात रुक जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए रेलवे ने इंजन के आगे आइसकटर लगाने का इंतजाम किया है।  और सड़कों पर से बर्फ हटाने के लिए स्पेशल 4×4 डबल अक्सर ड्राइव मशीनों का प्रयोग किया जाता है। बर्फबारी के चलते बिजली के तारों पर भी बर्फ जमने से लाइनों में शार्ट सर्किट का खतरा पैदा हो जाता है। इसलिए बर्फबारी के मौसम में लोडशेडिंग करना पड़ता है। घरों की छतों पर भारी बर्फ जमने से कमजोर छतों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है।

 

 2. लचीले बुनियादी ढांचे को डिजाइन करना

आधुनिक टेक्नोलॉजी के जरिए बुनियादी ढांचे जैसे हाईराइज इमारतें, पब्लिक कम्युनिटी सुविधाएं, ट्रांसपोर्ट, दूरसंचार और बिजली की लाइनें आदि को बाढ़, भूकंप और आग प्रतिरोधी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए  रणनीतिक रूप से डिजाइन किया जाने लगा है।

  • अनुकूल इंजीनियरिंग अभ्यास :

इंफ़्रास्ट्रक्चर को एक्सट्रीम मौसम की मार से बचाने के लिए इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी में नवीनता (innovation) का लगातार प्रयोग किया जाता है।  जैसे बाढ़ से शहर और इंफ़्रास्ट्रक्चर को बचाने के लिए बाढ़ और भूकंप रोधी डैम का निर्माण किया जाना है। एक्सट्रीम हीट से बचाने के लिए  हीट रेफ्लेक्टिव मैटेरियल जैसे रेफ्लेक्टिव पेंट और मैटेरियल कोटिंग्स का प्रयोग किया जाता है। ग्रीन बेल्ट, ऐग्रोनेट और हरित जोन का विकास किया जाता है।

  • जलवायु डेटा का प्रयोग :

बेसिक इंफ़्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए उसके प्लानिंग और डिजाइन करते समय ऐतिहासिक क्लाइमेटिक घटनाओं का अध्ययन करके इंफ़्रास्ट्रक्चर को डिजाइन किया जाने लगा है।  हमारे रिसर्च और डिजाइन विभाग क्लाइमेटिक घटनाओं  के संभावित पूर्वानुमानों को ध्यान में रखकर नये डिजाइन बनाते हैं जिससे नुकसान की संभावना कम हो जाती है।

  • टिकाऊ शहरी प्लानिंग :

अब शहरों में  विकास के लिए ग्रीन पार्क,  ग्रीन बेल्ट, ग्रीन हाउस और कॉरिडोर का निर्माण आवश्यक हो गया है।  बारिश के पानी को रोककर वाटर हार्वेस्टिंग से अंडरग्राउंड आपरेशन वाटर लेवल के  नीचे खिसकने को रोकने के प्रयास किये जा रहे हैं।  रिड्यूस, रियूज और रीसाइक्लिंग के जरिए हीट आइलैंड्स के एरिया  को कम किया जाता है।  शहरों में सभी जलाशयों अर्थात वाटर बाॅडीज को पूरा हरा भरा बनाये रखने का प्रयास हो रहा है।

 

3. मौसम परिवर्तन के जवाब में रखरखाव और उन्नयन

मौसम में बदलाव के कारण आपको अपने इंफ़्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड और अपडेट करते रहना चाहिए।  आपको अपने इंफ़्रास्ट्रक्चर को मेंनटेन रखना होगा। तभी आपका इंफ़्रास्ट्रक्चर टिक सकेगा।

  • नियमित मूल्यांकन एवं निरीक्षण:

नियमित निरीक्षण और मूल्यांकन करते रहने से आपको  इंफ़्रास्ट्रक्चर में सुरक्षात्मक कमज़ोरियों का पता चलता है। और आप उन कमज़ोरियों को गंभीरता से सही समय पर ठीक कर लेते हैं। इसलिए  यह विधि आपको ज़रूरत पर, सही उपचार या समाधान की सिफारिश करती है न कि पोस्टमार्टम की।

  • आधुनिक टेक्नोलॉजी में निवेश:

Internet of things सेंसर एक नई स्मार्ट टेक्नोलॉजी का घटक है। पर्यावरण में होने वाले बदलावों काये सेंसर पता लगाकर डेटा एकत्रित करते हैं। और इन सूचनाओं को अंतिम उपयोगकर्ता को देते हैं इस तरह से ये भौतिक(फिजिकल) और डिजिटल दुनिया के बीच एक लिंक निर्माण करते हैं। नये सेंसर पर्यावरण के टेम्परेचर, दाब, गति आदि जैसे फैक्टर्स  को मापकर, नेटवर्क पर जानकारी शेयर करते हैं। संकटकाल में इन सूचनाओं को इंफ्रास्ट्रक्चर के विशिष्ट क्षेत्रों जैसे परिवहन, ऊर्जा, दूरसंचार, आदि में  उपयोग किया जाता है।

  • फंडिंग और नीति चैलेंज :

किसी भी इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए फंड  और पालिसी  सबसे बड़ी चुनौती रहती है। इसमें  रेगुलेटरी अथॉरिटीज की लगातार बढ़ती जटिलता और मुश्किल पैदा करती है। इससे निपटने के लिए सरकार और नियामक संस्थाएँ वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए वित्तीय संस्थानों पर सख्त नियम और कानून बनाकर लागू कर रही हैं।

 

4.  मौसम-लचीला बुनियादी ढांचे के मामले का अध्ययन

मौसम-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के विकास से मौसम संबंधी खतरों से बचाव किया जाता है।

  • दुनिया के उदाहरण :

नीदरलैंड में सन् 1958 में  बांधों, तटबंधों को तूफानी लहरों से सुरक्षित  रखने के लिए बैरियर्स का एक नेटवर्क तैयार किया गया था। तीन साल में यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ। इसी तरह से 2006 में राइन सहित चार नदियों पर 34 प्रोजेक्ट्स शुरू किये गए। और 2020 में कोलंबियाई द्वीपसमूह पर आयोटा तूफान से प्रभावित मौसम प्रतिरोधक बेसिक इंफ़्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट को  शुरू किया गया।

  • पिछली आपदाओं से सीखे गए सबक :

सुनामी जैसे तूफान आने के बाद हमारे वैज्ञानिकों और सरकारों ने  सीखा कि किसी समुद्र तूफान आने  से पहले ही उनकी तीव्रता और आने का समय अनुमान किया जाये तथा जिस एरिया में तूफान आने वाला है वहाँ पर पहले से ही आपदा से निपटने की तैयारी कर ली जाये। यह सीख कर हमने उड़ीसा और पश्चिम  बंगाल  में  बाद  में आने वाले सभी तूफानों में नुकसान  कम करने में  सफल हुए। इसी तरफ गुजरात के भुज में आए भूकंप से सीख कर हमने डिजास्टर मैनेजमेंट और एनडीआरएफ और एसडीआरएफ का गठन किया।

  • नियोजन में सामुदायिक सहभागिता :

बेसिक इंफ़्रास्ट्रक्चर की योजना बनाने में लोकल समुदायों को शामिल करना कई बार उपयोगी साबित होता है। आप लोकल लोगों का उपयोग लोकल समुदाय की आवश्यकताओं, विचारों और दृष्टिकोणों को समझकर योजना बनाकर सफलता पा सकते हैं  और बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। इससे वहाँ के निवासियों के बीच विश्वास बढ़ता है और उनका विरोध कम हो जाता है। इससे आपका प्रोजेक्ट समय पर पूरा होता है।  और आपको विवादों की पहचान और समाधान करने में मदद मिलती है।

 

5. बुनियादी ढांचे और जलवायु अनुकूलन में भविष्य के रुझान

  • उभरती तकनीकें :

कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी में प्रगति से नयी-नयी सामग्रियों और स्मार्ट डिजाइनों का उपयोग होने लगा है। इससे आपका इंफ़्रास्ट्रक्चर एक्सट्रीम  मौसम के प्रति अधिक लचीला बनाया जाता है :

कंपोजिट मिश्र धातु जैसे नये मैटेरियल आपके इंफ़्रास्ट्रक्चर  को अधिक टिकाऊ और चरम मौसम के अनुकूल बनाते हैं।   ऐसा इंफ़्रास्ट्रक्चर विकृत होने के बाद अपने मूलस्वरूप  में वापस आ जाता है। जिससे वे भूकंप  क्षेत्रों में और अधिक  उपयोगी हो जाते हैं।

  • नीति और नियामक ढांचा :

सरकारों ने ऐसी नीतियां बनाई हैं जिससे लचीले बेसिक इंफ़्रास्ट्रक्चर को टिकाऊ और विश्वसनीय बनाया जा सकता है। इसके लिए सबको सुलभ बुनियादी ढांचे की डिजाइन सिद्धांतों को अपनाती हैं। और अपने राष्ट्रीय और लोकल रेगुलेटरी ढांचे को मजबूत करती हैं और सेवाओं के प्रबंधन में सुधार करती हैं। इसके अलावा सबसे ज्यादा फोकस वित्त पोषण में  तेजी लाना रहता है।

 

  • विभिन्न समूहों के बीच सहयोग :

सरकारी, निजी क्षेत्र और विभिन्न समुदायों के बीच सहयोग बेहतर बेसिक इंफ़्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए बहुत जरूरी है। इससे विभिन्न तरह की विशेषज्ञता और संसाधनों का लाभ मिलता है, कार्यकुशलता में सुधार होता है और प्रोजेक्ट समय पर तय बजट में पूरा हो जाता है। जिसका लाभ सभी को मिलता है।