क्लाइमेट क्या है? क्लाइमेट यानी जलवायु किसी बड़े भूभाग या इलाके का लम्बे समय तक बना रहने वाला औसत मौसम होता है जैसे भारत की कलाइमेट यूरोप की यूरोप की और अफ्रीका की क्लाइमेट से अलग है। यूरोप में आमतौर पर सर्दी बनी रहती है और भारत में जब सर्दियों का मौसम आता है तो यूरोप में बर्फबारी होती है और भयंकर सर्दी पड़ती है। पारा शून्य से माइनस डिग्री में चला जाता है। भारत में पहाड़ों पर तो बर्फबारी होती है लेकिन बाकी भाग में न बर्फबारी होती है और न ही पहाड़ों के जितनी सर्दी पड़ती है।
क्लाइमेट चेंज के कारण क्या हैं?
क्लाइमेट चेंज के कारणों को समझना
मनुष्य स्वयं ही क्लाइमेट चेंज का सबसे बड़ा कारण है। वह अपनी अनन्त इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ न कुछ करता रहता है। भारतीय संस्कृति में हमारे पूर्वजों ने प्रकृति से उतना ही लेने के लिए कहा गया कि जितनी आपको आवश्यकता हो। परन्तु पश्चिम के लोगों ने प्राकृतिक संसाधनों पर अपना कब्जा करने की होड़ लगा दी। उन्होंने इसे अपना अधिकार मान लिया और इस पर अपना काॅपी राइट बना लिया। तभी से यह समस्या शुरू हो गयी। वह हर चीज का पेटेंट करने लगे। इसका मतलब यह है कि जो चीज उनकी नहीं है और जिस पर उनका कोई कंट्रोल भी नही है वह उसे भी अपना मान बैठे।
क्लाइमेट चेंज के प्रमुख कारण प्राकृतिक संसाधनों का अनाप-शनाप शोषण करना है। जैसे मनुष्य ने प्रगति वाद के चक्कर में प्राकृतिक तेल, गैस और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों को बे हिसाब जलाना शुरू कर दिया इनको अंधाधुंध जलाने से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी जहरीली गैसें बढ़ने लगीं। इसके साथ मनुष्य ने जंगलों का अंधाधुंध काटना शुरू कर दिया जो वैश्विक गर्मी का कारण बनता चला जा रहा है।
क्लाइमेट चेंज का दूसरा कारण मानवीय गतिविधियां हैं। औद्योगिक क्रांति से मनुष्य ने भूमि के उपयोग में परिवर्तन किया है। जहाँ पहले जंगल थे वहाँ अब कंक्रीट के जंगल खड़े दिखाई देते हैं। पर्यावरण में मौसम विज्ञानियों ने क्लाइमेट चेंज का यह दूसरा प्रमुख कारण बताया है।
मौसम विभाग का कहना है कि क्लाइमेट चेंज का तीसरा सबसे बड़ा कारण ग्रीनहाउस गैसें हैं। इन गैसों के कारण, वायुमंडल में गर्मी का बढ़ना तेज हो गया जिससे वातावरण का तापमान बढ़ता है। हमारे वायुमंडल में कुछ प्राकृतिक गैसें स्वाभाविक रूप से पाई जाती हैं जो पर्यावरण को नियंत्रित करती हैं लेकिन मनुष्य ने तमाम तरह के रसायनों का उत्पादन बढ़ा दिया है। जिनके प्रकृति में अवशेष उन गैसों के माध्यम से मौसम को प्रभावित करते हैं यही कारण है कि ओजोन परत का संरक्षण भी संकट में आ गया है। सूर्य के निकलने वाली नुकसानदेह अल्ट्रावायलेट किरणें पृथ्वी पर सीधे पड़ने लगी हैं फलस्वरूप पृथ्वी ग्लोबल वार्मिंग का शिकार हो रही है।
क्लाइमेट चेंज में मानव योगदान
मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम शुरू कर दिया है। प्रगतिशील बनने को अंधी दौड़ में उसने अपना ही नुकसान कर लिया है। इस क्रम में देखा देखी करते हुए उसने ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधनों को अनावश्यक रूप से जलाना शुरू कर दिया फलस्वरूप वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, जो गर्मी बढ़ाती हैं और मौसम में परिवर्तन लाती हैं
वनों की कटाई: जंगलों के अंधाधुंध कटान से पृथ्वी की कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की क्षमता कम हो रही है, और वायुमंडल में इसकी मात्रा बढ़ती जाती है। वनों के कटान से नदियों के किनारे की मिट्टी का कटाव बढ रहा है और बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है और वर्षा का संतुलन बिगड़ गया है। मौसम के इस असंतुलन के कारण बाढ़ जैसी विनाशकारी समस्याएं बढ़ रही हैं।
कृषि क्षेत्र : कृषि क्षेत्र में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग धरती की उर्वरता को नष्ट कर रहा है। जिससे वायुमंडल में मीथेन, नाइट्रिक और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता हैं। हमारी मिट्टी जहरीली होती जा रही है।
औद्योगिक प्रक्रियाएँ: क्लाइमेट चेंज में औद्योगीकरण जैसे उर्वरक कारखाने, थर्मल और एटामिक ऊर्जा के पावर प्लांट स्टील और सीमेंट उत्पादन के कारखाने अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करते हैं इसी तरह से पेट्रोलियम रिफाइनरीज से निकलने वाले बाईप्राडक्ट्स में मिलने वाला प्लास्टिक और प्लास्टिक के कारखाने प्रदूषण फैलाने के मुख्य कारक हैं। यह प्प्लास्टिक बायो डिग्रेडेबिल न होने के कारण प्रकृति का बड़ा नुकसान करता है।
क्लाइमेट चेंज के प्राकृतिक कारक और उनकी भूमिका
प्राकृतिक चक्र: हमारी पृथ्वी की क्लाइमेट ने लाखों वर्षों तक गर्मी और शीत के प्राकृतिक चक्रों का अनुभव किया है, जो मिलांकोविच चक्र और El Niño Southern Oscillation (ENSO) जैसे कारकों से प्रभावित होते हैं। इसके प्रभाव से वह कभी ग्लोबल वार्मिंग का शिकार नहीं हुई। समय पर सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम होते रहते थे। और लाइफ सायकिल संतुलन में रहता था।
सौर विकिरण: सूर्य से निकलने वाली किरणें सीधे धरती पर आती हैं इनमें से कुछ खतरनाक किरणों का प्रभाव ओजोन लेयर से निकलने पर अवशोषित हो जाता है। यह किरणें पृथ्वी की क्लाइमेट को प्रभावित करती हैं। वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग का एक प्राकृतिक कारक यह भी है।
ज्वालामुखी गतिविधि: ज्वालामुखी विस्फोट से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसें और एरोसोल निकलती हैं, लेकिन इनका असर एक सीमित क्षेत्र में रहता है। यह क्लाइमेट चेंज में बहुत बड़ा योगदान नहीं करती हैं।
वैज्ञानिक सहमति
आईपीसीसी निष्कर्ष: क्लाइमेट चेंज पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) और तमाम दूसरे वैज्ञानिक संगठन मनुष्य को ही ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार पाते हैं। इसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधान संगठन मानते हैं कि मनुष्य की गतिविधियाँ, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, हाल के सदियों में देखी गई अभूतपूर्व दर से क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार हैं। एक सर्वे के अनुसार 97% मौसम और भूवैज्ञानिक क्लाइमेट चेंज के लिए मनुष्य को प्रमुख कारक मानते हैं।
निष्कर्ष
सामूहिक जिम्मेदारी: मानवीय गतिविधियों को क्लाइमेट चेंज का प्रमुख कारक मानने से यह निष्कर्ष निकलता है कि बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए मनुष्य को ही इसके उपाय करने होंगे। ऊष्मा के बढ़ते उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। भारत ने अपने प्रयास शुरू कर दिए हैं। ग्रीन एनर्जी और क्लीन एनर्जी के स्लोगन के साथ सौलर प्लांट्स, पवन ऊर्जा, बैटरी चालित वाहनों के उपयोग से इस दिशा में भारत ने अपने कदम बढ़ा दिए हैं।
कार्रवाई के लिए आह्वान: भारत ने पूरी दुनिया के देशों से बदलते मौसम और क्लाइमेट चेंज का सामना करने के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता पर आह्वान किया है। उसके इन प्रयासों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सराहा गया है। विश्व मंच पर भारत ने सतत ऊर्जा स्रोतों में बदलाव करके, पृथ्वी को बचाने और क्लाइमेट प्रोटोकॉल के पालन को बढ़ावा देने वाले नीतियों को बनाने और उनको क्रियान्वित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।