क्लाइमेट क्या है?
क्लाइमेट का अर्थ किसी देश, प्रदेश या एक बड़े भूभाग की जलवायु से होता है। जलवायु से तात्पर्य किसी देश या देश के एक बड़े क्षेत्र में लंबे काल खण्ड में बने रहने वाले औ सत मौसम की स्थिति से होता है। भू वैज्ञानिक और मौसम विज्ञानी इस कालखण्ड को आमतौर पर 30 वर्ष या इससे अधिक मानते हैं।
किसी देश की क्लाइमेट में मौसम वैज्ञानिक विभिन्न मौसमी तत्वों जैसे वर्षा, तापमान, बर्फबारी, वायु में नमी, उस क्षेत्र में चलने वाली तेज हवाएं, आँधी, तूफान, प्राकृतिक संसाधनों और आपदाओं जैसी अन्य तमाम स्थितियाँ शामिल करते हैं।
पृथ्वी की क्लाइमेट प्रणाली
किसी देश की जलवायु या क्लाइमेट प्रणाली में वे सभी तत्व शामिल किए जाते हैं जो उस क्षेत्र के मौसम को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे उस क्षेत्र का वायुमंडल, पर्वत, पहाड़, पठार, जंगल, मैदान, रेगिस्तान, समुद्र, जमीन की ऊपरी सतह, वनस्पति, बर्फबारी, और वहाँ की मानवीय गतिविधियाँ इत्यादि शामिल होती हैं।
क्लाइमेट प्रमुख रूप से सूर्य से आने वाली ऊर्जा द्वारा प्रभावित होती है। जैसे सूर्य से उस क्षेत्र की दूरी, उस देश या भूभाग की भौगोलिक स्थिति जिसमें उस स्थान की अक्षांश और देशान्तर सीमाओं का आंकलन समिलित्त होता है।
इस तरह से यह देखा जाता है कि क्लाइमेट प्रणाली के किसी भी घटक में परिवर्तन से मौसम में परिवर्तन हो जाता है। जैसे सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा में बदलाव से, उस क्षेत्र में वायुमंडलीय परिवर्तन होने लगता है इसी तरह से पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा करने के समय देश और क्षेत्र विशेष में मौसम का परिवर्तन होना शामिल है। उसी के अनुसार वह ऋतुओं का निर्धारण किया जाता है। जब पृथ्वी सूर्य के निकट होती है तब गर्मी का मौसम होता है। मार्च और सितम्बर महीने के तीसरे सप्ताह में पृथ्वी की सूर्य से दूरी समान होती है इसलिए इन महीनों का मौसम लगभग एक समान रहता है। जून के महीने में जब सूर्य पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समीप होता है तो पृथ्वी के उन हिस्सों में जो भूमध्य रेखा के समीप होते हैं वहाँ पर सूर्य से निकलने वाली किरणें सीधे न्यूनतम दूरी तय करके पृथ्वी पर पड़ती हैं इसलिए उन जगहों का तापमान बढ़ा हुआ पाया जाता है। भारत में यह रेखा मिर्जापुर, प्रयाग और नागपुर जैसे स्थानों से गुजरती है इसलिए वहाँ का मौसम जून महीने में बहुत गर्म हो जाता है।
यह प्रणाली अपने घटकों के बीच जटिल परस्पर क्रियाएँ और प्रतिक्रिया लूपों की विशेषता रखती है।
क्लाइमेट और मौसम के बीच अंतर
मौसम शब्द का प्रयोग किसी छोटे क्षेत्र के संबंध में कम समय जैसे घंटे या दिन के लिए होता है, जबकि क्लाइमेट एक देश या बड़े भूभाग के लिए कई वर्षों या दशकों तक मौसम का औसत अनुमान होता है।
मार्क ट्वेन और रॉबर्ट ए. हेनलेन के अनुसार क्लाइमेट का स्वभाव लगातार एक समान होता है जबकि मौसम अल्प काल में बदल जाता है। क्लाइमेट का चुनाव हम अपनी अपेक्षा के अनुरुप करते हैं जबकि मौसम ऐसा तत्व है जो हमें मिलता है उस पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं होता है। इस बात को आप ऐसे समझ लो कि क्लाइमेट आपकी अलमारी में कपड़ों की रेंज निर्धारित करती है, जबकि मौसम यह तय करता है कि आप किसी भी दिन क्या पहनेंगे।
क्लाइमेट की परिभाषा
क्लाइमेट किसी देश या बड़े भूभाग के क्षेत्रफल के लिए दिन-प्रतिदिन के मौसम के औसत से निर्धारित किया जाता है, जैसे वहाँ का औसत तापमान, अधिकतम और न्यूनतम तापमान शामिल है। क्लाइमेट निर्धारण के मुख्य तत्वों में वर्षा, आर्द्रता, धूप के घंटे और हवा के वेग के साथ-साथ तूफान जैसी मौसम की घटनाएं शामिल होती हैं।
क्लाइमेट और क्लाइमेट चेंज का अवलोकन
मौसम विज्ञानी विभिन्न केंद्रों पर किसी क्षेत्र विशेष की क्लाइमेट को तय करने के लिए दैनिक डेटा जुटाते हैं। यह औसतन 30 वर्ष या उससे अधिक समय तक अध्ययन करने के बाद तय होता है। किसी देश या क्षेत्र के मौसम का डेटा जैसे कि वहाँ पर पिछले वर्षों की गर्मियों या सर्दियों का अधिकतम तापमान इत्यादि के लंबे समय के औसत के साथ तुलना करने से क्लाइमेट में बदलाव को पहचानने में मदद मिलती है।
क्लाइमेट प्रणाली काम कैसे करती है
क्लाइमेट सिस्टम पाँच मेन तत्वों पर निर्भर करता है यह हैं हमारा वायुमंडल, जीवमंडल, क्रायोस्फीयर, जलमंडल और स्थलमंडल।
इस क्लाइमेट सिस्टम के अंदर नैचुरल भिन्नताएं और सिस्टम के बाहर के कारक जैसे सौर ऊर्जा उत्पादन में भिन्नता, भूकम्प, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक गतिविधियां और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जमीन के उपयोग में परिवर्तन होने जैसी मानवीय गतिविधियां इन सबके कारण क्लाइमेट बदलती रहती है। यही सब कारक तत्व हैं जो कहीं का मौसम और वहाँ की जलवायु को प्रभावित करते हैं। इसीलिए कभी-कभी आप सुनते होंगे कि राजस्थान में जहाँ भयंकर गर्मी पड़ती थी वहाँ भी बारिश होने लगी। अमेरिका के कई शहरों में बाढ़ आ गयी। और क्लाइमेट चेंज के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में गर्मी पड़ने लगी। ग्लेशियर पिघलने लगे। जिसके कारण वहाँ के मानव के साथ-साथ पशु-पक्षियों का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। और वे अपना स्थान छोड़-छोड़ कर पलायन कर रहे हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। जो तटीय क्षेत्रों के लिए संकट बनता जा रहा है।