मौसम का वन्यजीवन के साथ गहरा संबंध रहता है। मौसम का उनके जीवन पर रहने से लेकर भोजन पानी और सुरक्षा तक कई तरह से महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
1. मौसम का मिजाज और जानवरों का व्यवहार
मौसम के खराब होने की संभावना जानवरों को पहले से पता चल जाती है जिससे वह सुरक्षित स्थान के लिए भागने लगते हैं।
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पलायन :
मौसम में गर्मी के आने से पहले ही कुछ पक्षियों में यह देखा जाता है कि वह अपना स्थान छोड़ कर किसी दूसरे ठंडे स्थान पर चले जाते हैं। भारत में कई पक्षी विहारों में गर्मी के मौसम में विदेशी पक्षियों की बहुतायत देखी जाती है ऐसे में यह पक्षी विहार पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। इसी तरह से गर्मियों में दिन के समय जमीन में रहने वाले तमाम जानवर जमीन के अंदर दुबक जाते हैं और जब रात में ठंड होती है तब वे बाहर निकलते हैं।
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प्रजनन चक्र :
गर्मी का मौसम जानवरों के व्यवहार पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है। इस मौसम में उनके प्रजनन चक्र की शुरुआत होती है। जब मौसम में तापमान बढ़ता है तो जानवरों की कई प्रजातियाँ अपने मैटिंग साथी कोई तलाश में अधिक सक्रिय हो जाती हैं। पक्षियों में आमतौर पर यह चक्र वसंत ऋतु और गर्मियों की शुरुआत में होता है।
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भोजन ढूंढ़ना और भोजन करना:
वन्य जीवों के लिए भोजन की तलाश करना एक समस्या रहती है। कई बार एक जानवर भोजन की तलाश में भटकते हुए खुद किसी दूसरे जानवर का शिकार हो जाता है। कुछ जानवर इस असुरक्षा के कारण समूह में भोजन का पता लगाने निकलते हैं। जो शिकारी जानवर अजगर, शेर, चीता, बाघ, आदि होते हैं वह घात लगाकर बैठे रहते हैं और शिकार को पकड़ते हैं।
2. जलवायु परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन
जलवायु की परिस्थितियां अलग-अलग जानवरों के लिए अनुकूल और प्रतिकूल होती हैं उसके अनुसार ही वह अपने व्यवहार में बदलाव करते हैं।
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शारीरिक अनुकूलता :
कुछ जानवरो में मोटी खाल या खाल पर घने बड़े बाल होते हैं तो दूसरे जानवर की खाल में मोटी फैट की लेयर उनके शरीर के लिए मौसम से बचाव करती है। और उनको चरम मौसम में जीवित रहने में सहायक होती है। जैसे पिलर बीयर, भेंड़, पहाड़ी बकरियां, जंगली जानवर आदि। मूस अपने शरीर को गर्म बनाये रखने के लिए खोखले बालों का कवर अपने शरीर पर बना लेते हैं।
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व्यवहारिक अपनाना:
कुछ जानवर ऐसे तरीके अपनाते हैं जिसे वे अपने प्राकृतिक आवास में जिन्दा रहने के लिए ऐसा व्यवहार करते हैं। जैसे कि पशु-पक्षियों के घरों और घोसलों को उनका व्यवहारिक अनुकूलन कहा जा सकता है। सर्दियों में उनका हाइबरनेटिंग व्यवहार उनके लिए अनुकूलन का काम करता है। जानवरों में अक्सर भोजन खोजने के लिए, शिकारियों से बचने के लिए और अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए यह व्यवहारिक अनुकूलन उनकी क्षमता को बढ़ाते हैं।
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आवासीय प्राथमिकता :
वन्य जीवों में उनके रहने के स्थान का चयन करने की अलग अलग प्राथमिकता होती है। एक जानवर ऐसे रिएक्ट करता है जैसे कि वह अपने भविष्य के लिए चिंतित हो। सभी जीव अपने अस्तित्व को बचाने के लिए और प्रजनन के लिए वस्तुओं, ध्वनियों और गंधों के महत्व को समझते हैं। इसलिए उनकी प्रारंभिक प्रतिक्रियाएँ भावनात्मक रूप से व्यक्त होती हैं। सांप कभी अपना बिल नहीं बनाता है लेकिन वह चूहे को मारकर उसके घर पर कब्जा कर लेता है। चिड़िया तिनका तिनका जोड़कर बड़ा सुन्दर घोसला बना लेती है।
3. चरम मौसम की घटनाओं का प्रभाव
वन्यजीवों पर चरम मौसम की घटनाओं का असर पड़ता है इसलिए वह मौसम खराब होने से पहले ही अपना सुरक्षित स्थान ढूंढ़ लेते हैं। चोटियों के व्यवहार से पता चल जाता है कि बारिश होने वाली है वह अपने अंडे लेकर सुरक्षित स्थान पर भागने लगती हैं।
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अस्तित्व की चुनौती :
तूफान और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाएं वन्यजीवों के लिए कई तरह के ख़तरे पैदा करती हैं। इसी तरह बरसात, बर्फबारी, एवलांच आदि मौसमी खतरे जानवरों के लिए उनके अस्तित्व की चुनौती बन जाते हैं। और जानवरों की आबादी और उनके इको सिस्टम के लिए खतरा पैदा करते हैं। जैसे सैंडी तूफान ने बाढ़ की विनाशलीला करके कई तटों को बर्बाद कर दिया जिससे तमाम जानवरों के घर बहुत गये।
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आवासीय विनाश :
बारिश और बाढ़ में नदी के किनारे रहने वाले जानवरों को उनके निवास के विनाश का सबसे बड़ा खतरा रहता है। हर साल बाढ़ में उनके बने बनाये घर बह जाते हैं। इसी तरह से जंगल में लगी आग से सबसे ज्यादा जंगली जानवर जलकर मर जाते हैं और उनके घर जल जाते हैं। पक्षियों के घोसले जल जाते हैं। ऐसे में उनके जीवित रहने का खतरा बढ़ जाता है।
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लचीलापन और पुनर्प्राप्ति:
वन्यजीवों की कुछ प्रजातियों में उनकी जनसंख्या में आनुवंशिक विविधता के कारण लचक और पुनर्प्राप्ति की संभावना अधिक रहती है। और वह विनाश के बाद फिर से उठ खड़े होते हैं। दूसरे चरम मौसम की दुर्घटना के बाद अकशेरुकी (invertebrate) जीवों की तुलना में दूसरे जानवर जल्दी रिकवर कर लेते हैं।
4. जलवायु परिवर्तन और वन्यजीवों पर इसका प्रभाव
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आवास बदलना :
मौसम में बढ़ते तापमान के कारण पशु-पक्षियों की प्रजातियां अपना नेटिव स्थान छोड़कर कहीं दूसरी जगह सुरक्षित आवास की तलाश में अधिक ऊंचाई वाले या अक्षांशों की ओर जा चले जाते हैं। कुछ प्रजातियाँ ऐसी जगहों पर चली जाती हैं जो उनके लिए पहले बहुत ठंडे थे लेकिन अब उतने ठंडे नही रहे। इस तरह के क्षेत्र विस्तार से जो प्रजातियां कम गतिशील होती हैं या अधिक संवेदनशील होती हैं वह शिफ्ट नहीं कर पाती हैं। इससे उनके अस्तित्व पर खतरा मँडराता रहता है। और तापमान बढ़ने से वे प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।
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इको सिस्टम में बदलाव :
एक्सट्रीम मौसम और जलवायु परिवर्तन के कारण वन्य जीवों का इको सिस्टम बदल रहा है। कई पक्षियों की प्रजातियों का प्रवास अपने मूल स्थान से दूसरी जगह हो गया है। जैसे भारत में कई पक्षी विहारों में स्थाई रूप से नये विदेशी पक्षियों ने डेरा जमा लिया है। ऐसा जलवायु परिवर्तन के कारण शाकाहारी जीवों को उनके लिए भोजन की तलाश में करना पड़ता है। और वह अपना नेटिव स्थान छोड़ देते हैं। हम जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते पौधों पर कीटों के सफाये के लिए रासायनिक छिड़काव करते हैं तो भी वह कीट पलायन कर जाते है।
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खतरनाक प्रजातियां :
आप देख सकते हैं कि पर्यावरण में कई प्रजातियाँ जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। मोनार्क तितलियों को आईयूसीएन ने चरम मौसम को उनके लिए संकटग्रस्त माना है। इसी तरह से तापमान के प्रति संवेदनशील रहे समुद्री कछुए लुप्तप्राय हो गये हैं। इसी तरह से पहाड़ी गोरिल्ले, प्राइमेट, हाथी और धानी जानवर आदि तमाम अन्य जानवरों के लिए अस्तित्व का खतरा बढ़ रहा है।
5. वन्यजीवों के लिए संरक्षण रणनीतियाँ
विलुप्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए विश्व की सभी सरकारें और तमाम संगठन उनके संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं।
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आवासी सुरक्षा :
इन वन्य जीवों के संरक्षण के लिए मौजूदा उपलब्ध आवासों की सुरक्षा करने के साथ-साथ उनके खराब हो चुके आवासों को भी ठीक करने की जरूरत है। जैसे जंगलों को तैयार करना जिस तरह से उत्तर प्रदेश में सैफई जंगल सफारी का निर्माण किया गया। नमी युक्त भूमि का इको सिस्टम बनाना और नये अभ्यारण्य और पक्षी विहारों का निर्माण करना।
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मानीटरिंग और अनुसंधान :
वैज्ञानिक अनुसंधान से चरम मौसम और जलवायु परिवर्तन का वन्यजीवों पर असर जानकर उनके संरक्षण के प्रयास किये जा रहे हैं। फेनोलॉजी (Phenology) से जानवरों के स्थानीय जलवायु पैटर्न पर उनके प्रजनन का समय निर्धारित करते हैं। प्रजाति वितरण मॉडल आपको उनके संरक्षण से संबंधित फैसले करने में सहायता करते हैं। वन्यजीवन की निगरानी से उनके संरक्षण में होने वाले खतरों की पहचान कराते हैं। जैसे भारत की पक्षियों के संबंध में 2023 की रिपोर्ट में बताया गया कि कई पक्षियों की प्रजातियों में तेजी से गिरावट आई है।
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सामुदायिक सहभागिता :
वन्य जीवों के संरक्षण में लोकल समुदाय, संगठन और व्यक्तिगत लोग अपनी भूमिका निभा सकते हैं। इससे वन्य जीवों के संरक्षण की क्षमता बढ़ जाती है।
वन्यजीवों पर आधारित पर्यटन से लोक समुदाय को रोजगार भी मिलता है और उनका सहयोग भी मिलता है। ऐसा करके वह लोग न केवल पर्यावरण का संरक्षण करके वन्यजीवों की रक्षा करते हैं, बल्कि वे अपनी भविष्य की पीढ़ियों का जीवन भी सुरक्षित करते हैं।