मौसम और ऊर्जा की खपत

मौसम ऊर्जा की खपत में सबसे बड़ा रोल अदा करते हैं। गर्मी के मौसम में अक्सर देखा गया है कि ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है। और अधिक ठंड के दिनों में  भी ऊर्जा की खपत बढ़ ज्यादा होती है।

 

1. मौसम ऊर्जा की मांग को कैसे प्रभावित करता है

मौसम जब बहुत अधिक गर्म या बहुत अधिक सर्द  होते हैं  तब ऊर्जा की डिमांड बढ़ा देते हैं।

  • मौसमी बदलाव:

गर्मी के मौसम में जब  तापमान बहुत अधिक 48° सेल्सियस तक बढ़ जाता है कि तो ऊर्जा की डिमांड बढ़ जाती है क्योंकि कूलिंगउपकरणों का  उपयोग बढ़ जाता है। आपके घरों में पंखे की हवा गर्म रहती है इसलिए आप कूलर और एयर कंडीशनर का प्रयोग शुरू कर देते हैं।  इसी तरह सर्दी के मौसम में जब तापमान 10°सेल्सियस से नीचे चला जाता है तो आप अपने घरों  में  हीटिंग उपकरणों का प्रयोग बढ़ा देते हैं। इस तरह अधिक तापमान के  अंतर से हीटिंग और कूलिंग उपकरणों के प्रयोग से  ऊर्जा की डिमांड बढ़ जाती है।

  • नमी और हीट इंडेक्स:

आर्द्रता के लेवल में वृद्धि से भी ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है क्योंकि तब गर्मी चिपचिपी होने लगती है जो आपको और ज्यादा परेशान करती है।  यह आर्द्र हवा बाहर के वातावरण में  अधिक गर्मी  वाली होती है, जिसके कारण  घर के अंदर की हवा अधिक गर्म लगती है और आप असहज महसूस करते हैं। इस दशा में  जब आप एयर कंडीशनर का प्रयोग शुरू करते हैं तो  आर्द्र हवा के कारण एयर कंडीशनर को कमरे की हवा को ठंडा करने में ज्यादा काम  करना पड़ता है। और अधिक  ऊर्जा की खपत होती है। आप यह नोट कर लीजिये कि   सामान्य तौर पर नमी को 40% से 70% तक बढ़ाने में  10-20% ऊर्जा की खपत में कमी आती है।

  • मौसम चालित विसंगति :

एक्सट्रीम सर्दी और गर्मी के  दिनों में  गर्म और ठण्डी हवाएं एनर्जी डिमांड को अचानक बढ़ा देती हैं।  जिसके कारण आपको  बिजली सप्लाई में कटौती का सामना करना पड़ता है। इसे आप इस तरह से समझिए;

गर्म तरंगें

  • जब वातावरण में औसत तापमान सामान्य से अधिक   रहता है, तो आप एयर कंडीशनर  का अधिक उपयोग करते हो। इस वजह से आपके घर में  बिजली की खपत बढ़ जाती है। ऐसा ही सबके यहाँ  होता है तो विद्युत ग्रिड पर दबाव बढ़ जाता है और आपको ब्लैकआउट का सामना करना पड़ता है।  ये गर्म हवाएं फसलों को झुलसा देती हैं और आप सूखे का सामना करते हैं ।
  • शीत लहर
  • जब वातावरण में औसत तापमान सामान्य से कम हो जाता है तब आप हीटिंग सिस्टम का उपयोग करते हो। और आपके घर में अधिक ऊर्जा की खपत होती है। यही सभी लोग करते हैं।  इससे विद्युत ग्रिड पर लोड बढ़ जाता है और बिजली सप्लाई बंद हो जाती है।

 

 2. ऊर्जा उत्पादन और मौसम की स्थिति

अनुकूल मौसम में ऊर्जा उत्पादन सामान्य रहता है  लेकिन जब मौसम विपरीत हो जाता है तब डिमांड बढ़ जाती है। जो सामान्य उत्पादन से पूरी नहीं  होती है।

 

  • नवीकरण ऊर्जा सोर्स:

बरसात के मौसम में जब आसमान में बादल छाए रहते हैं और हवा की गति बदलती रहती है तब सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन प्रभावित होता है।

  • सौर ऊर्जा
  • सौलर पैनल तेज धूप वाले दिनों में  ज्यादा क्षमता से  सौर विकिरण के द्वारा बिजली बनाते हैं। जबकि   बादलो के  जाए होने पर या  बारिश होने पर और सर्दियों में कोहरा के जाने पर सूर्य की किरणें  तीव्रता  कम हो जाने से ऊर्जा उत्पादन  कम कर देते हैं।
  • पवन ऊर्जा
  • पवन ऊर्जा का उपयोग पवन टर्बाइनों  से बिजली उत्पादन करने के लिए एक निश्चित हवा की गति की जरूरत पड़ती है। हवा की गति मौसम और वायुमंडल में दाब और भौगोलिक स्थितियों से घटती- बढ़ती है। तेज हवा, आँधी-तूफ़ान या चक्रवात से विंड टर्बाइन और सौलर पैनलों की संरचना के लिए  खतरा बन जाता है। और ऊर्जा उत्पादन कम हो जाता है।
  • जलवायु विद्युत शक्ति

जलविद्युत उत्पादन के लिए डैम में  मिनिमम वाटर लेवल मेंनटेन रहना जरूरी होता है तभी ऊर्जा का उत्पादन होता है। सूखे के कारण भारत में दो बार ऐसी स्थिति आई थी जब मानसून न आने से बारिश  नहीं  हुई और विद्युत उत्पादन में बाधा आई। जब जल विद्युत प्लांट के इनकैचमेंट जलाशय में पानी का लेवल कम होता है, तो टर्बाइन ब्लेड्स पर  छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा कम पड़ जाती है। जिससे उत्पादन कम हो जाता है। ऐसे एरिया या देश जो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पर निर्भर हैं।  वहाँ सूखा पड़ने से बिजली उत्पादन ठप हो जाता है। वेनेजुएला एक उदाहरण है।

  •  जीवाश्म इंधन और परमाणु ऊर्जा :

परमाणु ऊर्जा के  चलने वाले पावर प्लांट्स बढ़ते टेम्परेचर के प्रति बहुत संवेदनशील माने जाते हैं। इन प्लांट्स में खर्च हुए ईंधन के सुरक्षित भंडारण के लिए कूलेंट के रूप में पानी जरूरी होता है। एटामिक रिएक्टर के लिए  बिजली के प्रति मेगावाट उत्पादन के लिए  1,101 से 44,350 गैलन पानी की जरूरत होती है। इससे आप न्यूक्लिक प्लांट और उससे  बनने वाली एनर्जी की संवेदनशीलता और  गंभीरता का अंदाजा लगा सकते हैं। इसलिए इन प्लांट्स को कोस्टल रीजन में बनाया जाता है।

जीवाश्म ईंधन हमारे प्लैनेट पर  पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करते हैं। क्योंकि इनसे निकलने वाली गैसें जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड मोनोक्साइड और दूसरी जहरीली गैसें, ग्रीन हाउस इफेक्ट पैदा करती हैं और मृदा क्षरण,  ग्लोबल वार्मिंग और अम्लीय वर्षा का सबसे बड़ा कारण बनती हैं।

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3. ऊर्जा खपत में क्षेत्रीय अंतर

भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा की खपत में अंतर पाया जाता है।  यह उनके  डिमांड और भौगोलिक स्थिति के ऊपर निर्भर करता है।
  • क्लाइमेट जोन और ऊर्जा का उपयोग:

भिन्न-भिन्न क्लाइमेट जोन में  ऊर्जा खपत के पैटर्न में कई कारणों से भिन्नता पाई जाती है जैसे;

गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में आप देखते होंगे कि लोग घरों में सेन्ट्रली एयरकंडीशन का उपयोग करते हैं  इसमें बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती हैं। जबकि  सर्दियों में, घर को गर्म रखने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

  • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की खपत:

शहरों में, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण  विद्युत ऊर्जा की डिमांड ज्यादा रहती है। क्योंकि शहरों में आप अपने घरों  में  तमाम उपकरणों का प्रयोग करते हैं जैसे फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन, गीजर, डिशवाशर, एसी और  अन्य दूसरे उपकरण इसके अलावा कामर्शियल उपयोग के लिए मशीनों को भी विद्युत ऊर्जा से चलाया जाता है इसके साथ-साथ इंड्ट्रीज भी शहरों के आसपास ही होती हैं तो उनमें भी ऊर्जा की खपत होती है।  इसलिए शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक ऊर्जा की खपत होती है।

  • क्षेत्रवार रणनीतिक स्वीकार्यता:

विभिन्न क्षेत्रों में वहाँ के लोकल मौसम और जलवायु के हिसाब से ऊर्जा की जरूरत तय करते हैं। अधिक गर्म और अधिक ठंडे क्षेत्रों में ऊर्जा की खपत भी अधिक होती है। इसी तरह औद्योगिक क्षेत्रों में भी ऊर्जा की खपत अधिक होती है। इसलिए औद्योगिक क्षेत्र अपने लिए डेडीकेटेड पावर प्लांट का निर्माण करते हैं जैसे कानपुर औद्योगिक शहर ने पनकी थर्मल पावर प्लांट स्थापित किया।  इसी तरह पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे छोटे चेक डैम बनाकर वहाँ की लोकल ऊर्जा खपत की मांग पूरी  की जाती है। गल्फ कंट्रीज में  जहाँ पेट्रोलियम पदार्थ सस्ता है वहाँ छोटे छोटे शहर, कस्बे और गाँव में जरूरत के अनुसार अपने डीजल पावर प्लांट स्थापित करके अपनी ऊर्जा की डिमांड पूरी करते हैं।

4. मौसम पूर्वानुमान और ऊर्जा प्रबंधन

मौसम विज्ञान विभाग मौसम पूर्वानुमान बताते हैं जिसके अनुसार  ऊर्जा विभाग ऊर्जा उत्पादन और वितरण की योजना बनाते हैं।

 

  • पूर्वानुमान विश्लेषण :

बिजली कम्पनियां मौसम के पूर्वानुमान के आधार पर अपनी ऊर्जा का उत्पादन और वितरण की योजना बनाते हैं।  अगर तेज तूफान, आँधी, चक्रवात और बारिश की संभावना होती है तो बिजली कम्पनियां विद्युत वितरण को डायवर्ट कर देती हैं  जिससे  मौसम की खराबी से लाइनों के टूटने पर शार्ट सर्किट का खतरा टल जाये। अगर उत्पादन कम करना जरूरी हो जाता है तो विद्युत उत्पादन कम्पनियां कुछ यूनिट बंद कर देती हैं। इस तरह मौसम पूर्वानुमान का विश्लेषण करके कम्पनियां पहले से ही रणनीति बना लेती हैं।

स्मार्ट ग्रिड और तकनीक :

स्मार्ट ग्रिड तकनीक से आप और प्लांट में पैदा हुई ऊर्जा का वितरण को आप्टिमाइज कर सकते हैं। और साथ ही साथ ट्रांसमिशन  हानि (losses) को कम कर सकते हैं। इस तकनीक से आप कई ग्रिड को आपस में जोड़कर पूरे देश में  ऊर्जा का प्रभावी वितरण करने में  सक्षम  होते हैं  क्योंकि जब एक ग्रिड  फ़ेल होता है तो दूसरे ग्रिड से उस ग्रिड के उपभोक्ताओं को बिना देरी और रुकावट के बिजली की आपूर्ति की जा सकती है। इस तकनीक का उपयोग करके आप  वास्तविक समय डेटा निगरानी के जरिए बिजली कटौती को कम से कम किया जाता है और ऊर्जा का पूरा  उपयोग होता है।  इस तकनीक से  किसी भी  ग्रिड पर एक्स्ट्रा प्रेशर नहीं पड़ता है।

 

  • डिमांड रिस्पांस  प्रोग्राम :

बिजली  कंपनियां ऊर्जा की मांग और सप्लाई  के बीच समन्वय बनाने के लिए योजना बनाती हैं जिससे  एक्सट्रीम मौसम में  डिमांड और सप्लाई का बैलेंस  बना रहता है।  डिमांड रिस्पांस (D-R) प्रोग्राम में डाइरेक्ट लोड को कंट्रोल करने के  ग्रिड की  स्थिरता और उपभोक्ताओं को सुविधा देने के लिए डीआर प्रोग्राम अहम रोल अदा करता है।  इससे  पीक डिमांड के समय ग्रिड पर प्रेशर कम हो जाता है। इसके उपयोग से आप पीक डिमांड के समय अधिक बिजली खपत करने वाले उपकरण बंद कर सकते हैं। और अपने  इलेक्ट्रिक वाहनों को कम डिमांड के समय पर  चार्ज करने के लिए लगा सकते हैं।

 

 5. भविष्य के रुझान: जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा की खपत

  • लंबे समय तक मांग में  बदलाव :

जलवायु परिवर्तन के कारण ऊर्जा की खपत का तरीका बदलता रहता है। जैसे गर्मी में कूलिंग और सर्दी में  हीटिंग की जरूरत होती है।   जलवायु परिवर्तन के कारण नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत भी प्रभावित होते हैं जैसे सूखा पड़ने पर जैव(Bio) ऊर्जा के लिए फसल पैदा करना कठिन हो जाता है। वर्षा में कमी और उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण  से जलविद्युत प्लांट  की क्षमता कम हो जाती है।

  • लचीले इंफ़्रास्ट्रक्चर में निवेश:

एक लचीली विद्युत प्रणाली में निवेश करने से बिजली कटौती की संभावना कम होती है। और अगर कटौती करना आवश्यक हो गयी उसे शीघ्रता से बहाल किया जाता है।  एक्सट्रीम मौसम का सामना करने के लिए  कंपनियां तैयार रहती हैं। रोजगार  के नये अवसर सृजित होते हैं, सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग सार्थक हो जाता है, स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन संभव होता है

  • पाॅलिसी  इंप्लीकेशन:

जलवायु परिवर्तन या मौसम में बदलाव के कारण सरकारें ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा विकल्पों को बढ़ाने की नीतियां बनाती हैं। जैसे नवीकरणीय ऊर्जा हिस्सेदारी में  वृद्धि, कार्बन उत्सर्जन में कमी करना और ऊर्जा दक्षता के लिए लक्ष्य तय करती हैं।

  • प्रोत्साहित करना 
  • सरकारें नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने के लिए और  प्रौद्योगिकियों को ऊर्जा उत्पादन, वितरण और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी, टैक्स क्रेडिट, अनुदान या कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करती हैं।
  • सेवाओं का संरेखन
  • सरकारें ऊर्जा लक्ष्यों को पाने के लिए  अपनी सेवाएं संरेखित करती हैं जैसे  ऊर्जा, आवास, उद्योग, परिवहन और वित्त के लिए जिम्मेदार मंत्रालयों की भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल होता है।